जमालुद्दीन उर्फ छांगुर ने प्रदेश के प्रमुख जिलों में अवैध धर्मांतरण का अड्डा बनाने की रणनीति बनाई थी। इसके लिए वह देवीपाटन मंडल को केंद्र बना रहा था, जिसके तहत जमीनों की खरीद के लिए एक टीम बनाई थी। एटीएस व ईडी की जांच में यह राज सामने आने के बाद छांगुर व उसके 13 करीबियों के नाम और पते की सूची प्रदेश के सभी रजिस्ट्री दफ्तरों को भेजी गई है। संबंधित नामों से हुए बैनामों का ब्योरा मांगा गया है।
छांगुर अवैध धर्मांतरण से मिलने वाले विदेशी फंड को खपाने के लिए जमीन का कारोबार शुरू किया था। आशंका है कि वह अपना जाल प्रदेश के सभी जिलों में फैला रहा था। जमीनें कहां खरीदीं और बेची गईं, इसका ब्योरा रजिस्ट्री कार्यालयों से ही मिल सकता है।
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एटीएस व ईडी दोनों की जांच में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि छांगुर अपने सहयोगियों के नाम से जमीन खरीद रहा था। छांगुर कॉम्प्लेक्स व कोठी का निर्माण कराकर धर्मांतरण की मुहिम तेज कर रहा था। एटीएस ने यह भी आशंका जताई है कि अन्य प्रदेशों में भी वह जमीन खरीद रहा था। मुंबई और नागपुर में जमीन के सौदे की बात सामने भी आ चुकी है। अब रजिस्ट्री दफ्तरों से बड़े खुलासे की उम्मीद है।
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इन नामों की रजिस्ट्री पर नजर
उपनिबंधक कार्यालयों को 13 नामों की सूची भेजी गई है। इनमें मधपुर उतरौला के जमालुद्दीन शाह उर्फ छांगुर, महबूब, नीतू उर्फ नसरीन, समाले नवीन रोहरा उर्फ सबीहा, नवीन उर्फ जमालुद्दीन, रेहरा माफी गांव के मोहम्मद सबरोज, रशीद, गोंडा के रेतवागाड़ा के रमजान, नागपुर के इदुल इस्लाम, बड़ा धुसाह के राजेश उपाध्याय, संगीता देवी उपाध्याय व अपना घर के प्रोपराइटर बाबू उर्फ वलीउद्दीन के नाम शामिल हैं।
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उतरौला में छांगुर की जमीन पर प्लॉटिंग पर रोक
बलरामपुर के उतरौला में छांगुर ने प्लॉटिंग का काम शुरू किया था। जमीनों को खरीदकर सीधे एग्रीमेंट से प्लॉटों की बिक्री करके मोटा मुनाफा कमा रहा था। अब प्रशासन ने उतरौला में छांगुर की ओर से कराई जा रही प्लॉटिंग पर रोक लगा दी है।
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राजस्व नियमों के तहत किसी भी जमीन की बिक्री आवासीय प्लॉट के रूप में तभी हो सकती है, जब धारा 80 के तहत प्लॉट को आबादी जाए। इसके विपरीत बड़े पैमाने पर जमीनों को बिना आबादी में परिवर्तित कराए ही बिक्री की जा रही थी। इसमें नवीन और उसके बेटे महबूब सीधे तौर पर शामिल थे। इसके तहत दोनों ने उतरौला कस्बे में प्लॉटिंग के साथ ही आसपास के गावों में जमीन खरीदी थी।