
लक्ष्मण मेला घाट पर छठ पूजा को लेकर सुशोभिता बनातीं महिलाएं व युवतियां।
लखनऊ। संतान की समृद्धि, खुशहाली व अच्छी सेहत के लिए रखे जाने वाले छठ महापर्व का शुभारंभ मंगलवार भोर से हो रहा है। इसके मद्देनजर सोमवार को घाटों पर श्रद्धालु सुशोभिता बनाते नजर आए। घरों व अपार्टमेंट में भी छठ माई की पूजा के लिए विशेष सफाई की गई। स्नान के लिए अपार्टमेंट व आवासीय समितियों में भी अस्थायी कुंड बनाए गए हैं।
छठ पूजा प्रकृति को समर्पित पर्व है जिसमें सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा होती है। यह पर्व चार दिन चलता है जिसका आरंभ चतुर्थी तिथि से हो जाता है और समापन सप्तमी तिथि पर होता है। छठ पर्व पर व्रती कमर तक जल में प्रवेश कर सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं। छठ की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है। इस त्योहार का समापन सप्तमी पर होता है। यह महापर्व पांच से आठ नवंबर तक मनाया जाएगा। कुड़ियाघाट, लक्ष्मण मेला घाट, पंचवती घाट और गऊघाट पर सोमवार देर शाम तक तैयारियां होती रहीं।
खरना कल, छठ मैया को लगेगा गुड़ की खीर का भोग
आचार्य एसएस नागपाल के मुताबिक, छठ पर्व मुख्य रूप से षष्ठी तिथि को किया जाता है। इसका आरंभ नहाय खाय से पांच नवंबर से हो रहा है। पहले दिन व्रती महिलाएं नदियों में स्नान कर कद्दू की सब्जी, लौकी, भात, सरसों का साग एक समय खाती हैं। दूसरे दिन छह नवंबर को खरना या लोहंडा किया जाएगा। इसमें शाम के समय व्रती महिलाएं गुड़ की खीर बनाकर छठ मैया को भोग लगाती हैं। पूरा परिवार इस प्रसाद को खाता है। तीसरे दिन सात नवंबर को छठ महापर्व मनाया जाएगा जिसमें अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। चौथे दिन सप्तमी तिथि पर आठ नवंबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व का समापन होगा। छठ पूजा के दौरान प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, फलों और नारियल का प्रयोग किया जाता है।
इसलिए देते हैं डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य
छठ पूजा में तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है, क्योंकि यह समय प्रतीकात्मक रूप से जीवन के संघर्षों और कठिनाइयों को समाप्त करने और नवजीवन का आरंभ करने का संकेत देता है। डूबते सूर्य की पूजा करके व्यक्ति नई ऊर्जा के साथ अगली सुबह का स्वागत करने की शक्ति प्राप्त करता है।