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– मेडिकल कॉलेज में हर महीने दिखाने आते इस दुर्लभ बीमारी के 20 से 25 बच्चे
अमर उजाला ब्यूरो
झांसी। ईटिंग डिसऑर्डर पीका के शिकार झांसी के कई बच्चे बाल से लेकर कंकड़ तक खा रहे हैं। कई बच्चों की तो जान तक जोखिम में पड़ जा रही है। डॉक्टरों का कहना है कि ये दुर्लभ और खतरनाक बीमारी है। डिसऑर्डर से ग्रसित बच्चों के परिजनों को ध्यान देने की जरूरत होती है कि कहीं बच्चा जहरीली वस्तु न खा ले।
अक्सर आपने छोटे बच्चों को चॉक, मिट्टी यहां तक की दीवार में पेंट की खुरचन खाते देखा होगा। परिजन के बार-बार मना करने पर भी बच्चे ये आदत नहीं छोड़ पाते हैं। दरअसल, इसे पीका ईटिंग डिसऑर्डर कहते हैं। इसी डिसऑर्डर के शिकार कई बच्चे तो ऐसी चीजें खाने लगते हैं, जिसे सुनकर भी यकीन नहीं होता। हालांकि, ये बीमारी किस कारण होती है, ये साफ नहीं है। मगर इसे शरीर में आयरन और जिंक की कमी से जोड़कर देखा जाता है। इस बीमारी की कोई विशेष दवा नहीं है। कुछ मामलों में मल्टी विटामिन और सप्लीमेंट देकर इलाज किया जाता है। थेरेपी से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. ओमशंकर चौरसिया ने बताया कि सामान्यत: ये बीमारी छह साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है। झांसी में इस डिसऑर्डर के हर महीने 20 से 25 बच्चे दिखाने के लिए आते हैं। बच्चों को बाल से लेकर कंकड़ खाने तक की लत पड़ जाती है।
रोगी को ये समस्याएं होती हैं
– मस्तिष्क क्षति
– आयरन की कमी
– आंत की रुकावट
– शरीर में खून की कमी, कुपोषण
– इलेक्ट्राेलाइट असंतुलन से संक्रमण
केस-1
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सर्जरी करके पेट से निकाला दो किलो बालों का गुच्छा
12 साल की किशोरी को बाल खाने की आदत पड़ गई। धीरे-धीरे उसे भूख लगनी कम हो गई। कुछ भी खाने पर अपच और उल्टियां होने लगीं। परिजन ने उसे मेडिकल कॉलेज के सर्जन डॉ. पंकज सोनकिया को दिखाया। जांच-पड़ताल करने के बाद उन्होंने किशोरी की सर्जरी की। ऑपरेशन के दौरान पेट से दो किलो बालों का गुच्छा निकला। अब बच्ची पूरी तरह स्वस्थ है।
केस-2
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कंकड़ खाता था बच्चा, ऑपरेशन से भी नहीं बची जान
झांसी के एक श्रमिक का सात साल का एक बच्चा मिट्टी और कंकड़ खाता था। धीरे-धीरे उसे पेट में दर्द, उल्टियां, अपच की समस्या होने लगी। मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने जांच के बाद ऑपरेशन की सलाह दी। कंकड़ से बच्चे की आंत को काफी नुकसान हो गया था। संक्रमण भी फैल गया था। सर्जरी के बाद भी उसकी जान नहीं बच पाई।