लखनऊ। मदद करना ही है तो इस तरह से करो कि लोग अपनी जरूरतें खुद पूरी कर सकें। इसी सोच ने प्राची और उनकी दोस्त सोनिया व विभा की जिंदगी बदल दिया। उन्होंने तय किया कि निशुल्क राशन की मदद एक-दो दिन तो दी जा सकती है, लेकिन इससे समाधान संभव नहीं है। इसलिए स्थायी मदद की कोशिश शुरू की।

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घर में रखी सिलाई मशीन उठाकर दो महिलाओं का प्रशिक्षण शुरू किया, देखते-देखते ये कारवां 200 महिलाओं तक पहुंच गया। खास बात यह है कि पुराने और बेकार हो चुके सामानों से इन्होंने उत्पाद तैयार करवाने शुरू किए। पहले पुराने और बेकार सामानों से बैग, फोल्डर आदि तैयार करवाए, फिर जूट के सामान तैयार करवाने लगीं।

घर के काम के बाद का वक्त अपने काम को दिया

सोनिया कहती हैं कि हम लोग व्यक्तिगत स्तर पर सामाजिक कार्य पूरे करते रहते थे। इसी कड़ी में हमने आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया। हमने इलाके में पता किया कि सुबह घर के काम निपटाने के बाद कौन-कौन महिलाएं दो से तीन घंटे निकाल सकती हैं। फिर उनके साथ मीटिंग करते, उन्हें अपने पैर पर खड़े होने के लिए प्रेरित करते हैं। 200 महिलाएं प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं। 14 महिलाएं सेंटर पर हमारे साथ जुड़ी हैं, जो इस वक्त 5000 रुपये तक प्रतिमाह अपना हाथ खर्च कमा रही हैं।

अपना बाजार खुद तलाश रहीं

घरेलू स्तर या प्रशिक्षण सेंटर पर काम करने वालों के सामने एक बड़ी समस्या आती है अपने उत्पाद को बेचने की। प्राची कहती हैं कि इसका भी रास्ता हमने निकाल लिया। हमाने व्हाट्स एप ग्रुप और सोशल मीडिया के माध्यम से सेंटर पर तैयार उत्पाद की जानकारी लोगों तक पहुंचाना शुरू किया। इससे एक ऐसा नेटवर्क तैयार हुआ है कि यहां तैयार उत्पाद आसानी से बिक जाते हैं। लोग शादी-विवाह व अन्य समारोह में उपहार देने, पैकेजिंग करने के लिए हमसे सामान तैयार करवा रहे हैं।



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