
श्रवण देवी मंदिर परिसर स्थित प्रह्लाद कुंड व स्थापित नरसिंह भगवान की मूर्ति
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पौराणिक मान्यता है कि होली के त्योहार की शुरूआत हरदोई से हुई है। इसके पीछे मान्यता है कि श्रीहरि के भक्त प्रह्लाद ने होलिका की राख से पहली होली खेली थी। तभी से होलिका पूजन और राख लगाने के बाद रंग-गुलाल खेलने की परंपरा है। होली के त्योहार का यूपी के हरदोई जिले से गहरा नाता है। हरदोई को राजा हिरण्यकश्यप की नगरी कहा जाता है। इसके कई अवशेष वर्तमान में भी मौजूद हैं। शहर के सांडी रोड पर भक्त प्रह्लाद का टीला, प्रह्लाद घाट इसकी प्राचीनता को बयां कर रहे हैं।
होली त्योहार आते ही यह यादें ताजा होने लगती हैं। राजा हिरण्यकश्यप राक्षसी प्रवृत्ति का था और भगवान के नाम तक का विरोध करता था। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद श्रीहरि का भक्त था और भगवान नाम का जप और भजन किया करता था। ऐसा पौराणिक कथाओं में भी बखान मिलता है।
कथाओं में प्रसंग मिलते हैं कि हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रह्लाद को श्रीहरि की भक्ति छोड़ने के लिए कई यातनाएं भी दी। हिरण्यकश्प की बहन होलिका के पास एक दुशाला (शाल) थी। दुशाला को आग में न जलने का वरदान मिला था। हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका से गोद में लेकर पुत्र प्रह्लाद को जलाने की योजना बनाई। भाई के कहने पर होलिका दुशाला ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ गई और आग लगा दी गई। भक्त प्रह्लाद का श्रीहरि में अटूट विश्वास होने के कारण बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिका को लपटों ने खाक कर दिया। इसी होलिका की राख से प्रह्लाद ने पहली होली खेली थी।
