
नाटक के मंचन के दौरान हिमानी शिवपुरी और राजेंद्र गुप्ता।
लखनऊ। कबीर महोत्सव में रविवार को कला प्रदर्शनियों, मुशायरे और नाट्य प्रस्तुतियों ने कबीर की प्रासंगिकता को आधुनिक संदर्भों में प्रस्तुत किया। गोमती नगर स्थित संगीत नाटक अकादमी में समझो सिनेमा सत्र के दौरान सिनेमा में राष्ट्रनिर्माण के बदलते दौर को पर्दे पर दिखाया गया। अंतिम सत्र के दौरान हिमानी शिवपुरी और राजेंद्र गुप्ता के नाटक जीना इसी का नाम है… का दर्शकों ने आनंद लिया।
डाॅ. अविनाश ने एक बार फिर दर्शकों के साथ नब्बे के दशक में राष्ट्र प्रेम पर आधारित फिल्मों की तुलना वर्तमान सिनेमा से की। उन्होंने मदर इंडिया, हम हिंदुस्तानी और धर्मपुत्र जैसी फिल्मों के जरिए सिनेमा के बदलते दौर पर चर्चा की। प्रतिभागी छात्रों को प्रमाणपत्र बांटे गए। दूसरे सत्र में लखनऊ की स्पोर्ट आर्ट करिकुलर की फाउंडर अदिति अरोरा ने कबीर पेंटिंग के जरिए डूडल आर्ट कार्यशाला को रंगों से भर दिया। उनके साथ लखनऊ की मीनल, निपुन और श्रुति कबीरदास की तस्वीरों में रंग भरती नजर आईं। इसके बाद माटी कहे कुम्हार से… सत्र में कुलदीप ने एक बार फिर चाक का बेहतरीन प्रदर्शन किया। इसमें स्कूली छात्राओं ने मिट्टी के बर्तन बनाकर कार्यशाला का लुत्फ उठाया।
मुहब्बत की शायरी तो कबीर के नगमों ने लूटी महफिल
जंग में आएगा दोबारा दिल, हम नहीं मानते हारा दिल…। युवा कवि अभिश्रेष्ठ तिवारी की इन पंक्तियों पर श्रोताओं ने जमकर तालियां बजाईं। वहीं शाहबाज तालिब, आकिब हैदर, सलमान ख्याल, अब्दुल्ला साकिब़ और सैयद मोईन अल्वी ने भी अपने कलाम पेश किए। इसके बाद इंडियन आइडल फेम कुलप सिंह चौहान ने कीबोर्ड की धुन पर तोसे नैना लागे रे पिया सांवरे… गाया तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने कबीर के सूफी नगमों के साथ सामाजिक मुद्दो पर गीत प्रस्तुत किए। इसी के साथ कबीर फेस्टिवल का समापन हो गया।