
चुनाव का वो दौर…जब कबूतर भी करते थे चुनावी ड्यूटी
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लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव चुनाव, जिसने समय के साथ न जाने कितने बदलाव देखे हैं। इस साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव में जहां अत्याधुनिक तकनीक के सहारे आयोग संदेशों का आदान प्रदान कर रहा है, वहीं एक दौर ऐसा भी था जब प्रशासन ने चुनाव में कबूतरों का सहारा लिया था। ये कबूतर कुछ उसी अंदाज में संदेशवाहक का कार्य करते थे, जिस तरह आज हम व्हाट्सएप या अन्य संदेश भेजने के प्लेटफॉर्म का प्रयोग करते हैं। इसके लिए पुलिस विभाग ने कबूतरों को प्रशिक्षित किया था।
चुनाव में राजनीतिक दल आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन 1967 के उड़ीसा विधानसभा के लिए हुए चुनाव में प्रशासन ने अनूठा तरीका अपनाया। प्रशासन ने चुनाव में कबूतरों से भी काम लिया था। उड़ीसा के कुछ मतदान केंद्र दूरदराज के जंगल में स्थित थे। इन दुर्गम स्थानों पर चुनाव कर्मचारियों को पहुंचने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था। साथ ही समय भी काफी लगता था।
अमर उजाला के 19 फरवरी 1967 के अंक में छपी खबर के मुताबिक उड़ीसा पुलिस विभाग ने चुनाव में लगभग 300 कबूतरों को प्रशिक्षण देकर ड्यूटी पर लगाया था। उसके बाद इन प्रशिक्षित कबूतरों से मतदान केंद्रों तक संदेश पहुंचाने का काम लिया। ये कबूतर इस तरीके से प्रशिक्षित किए गये थे कि घने जंगलों में स्थित मतदान केंद्रों पर बहुत जल्द चुनाव संबंधी संदेश पहुंचा देते थे। चूंकि ये कबूतर जंगल से होकर गुजरते थे, इसलिए यह भी डर था कि रास्ते में लोग इनका शिकार कर सकते हैं।
प्रशासन ने वन विभाग से भी कहा था कि उसके कर्मचारी यह सुनिश्चित करें कि आदिवासी तीर कमान से इन्हें न मारकर गिरा दें। साथ ही कर्मचारियों से कहा था कि लोग इन कबूतरों को न पकड़ें, इसका ध्यान रखा जाए।