इटावा। 2025 तक देश को क्षय रोग मुक्त बनाने के उद्देश्य से भले ही सरकार की ओर से तमाम तरह की व्यवस्थाएं करने का दावा किया जा रहा हो। लेकिन, पिछले कई दिनों से क्षय रोगियों को आधा-अधूरा इलाज दिया जा रहा है। पांच दवाएं न होने से मरीजों को उपचार की समय सीमा बढ़ने का डर सता रहा है।
जिले में टीबी के मरीजों की संख्या 3217 है। इसमें से 3086 मरीज प्रथम चरण के हैं। 131 एमडीआर (मल्टी ड्रग रजिस्टेंट) के हैं। इस चरण के मरीजों को गंभीर माना जाता है। टीबी के मरीजों के बेहद सावधानी बरती जाती है। इसके बावजूद क्षय रोग विभाग के पास खुराक की पूरी दवाएं ही उपलब्ध नहीं हैं। बीमारी से जुड़ीं महत्वपूर्ण पांच दवाओं का टोटा है। शासन स्तर से इन दवाओं की आपूर्ति नहीं हो सकी है। न ही स्थानीय स्तर पर दवाओं को खरीदा गया है।
जिले में क्लोफाजमिन और लिंजाजोइलिड नामक दवाएं क्षय रोग विभाग में खत्म हो गई हैं, जबकि टीबी मरीजों को नियमित दवाओं का सेवन अनिवार्य रहता है। एमडीआर टीबी मरीजों के लिए यह दवा बेहद जरूरी है। इसके न मिलने से मरीजों की स्थिति और भी बिगड़ सकती है। विभागीय लोगों के अनुसार, शासन ने जून माह में दवा की स्थानीय स्तर पर खरीदारी के लिए बजट भी भेजा था, लेकिन जिम्मेदारों की हीलाहवाली के कारण यह दवाएं खरीदी नहीं जा सकी हैं।
ये प्रमुख दवाएं नहीं है उपलब्ध
क्लोफाजमिन और लिंजाजोइलिड के अलावा जिले में पैरीडाक्सिन 50 और 100 एमजी , डेलामाइन ,साइक्लोसिरिन जैसी प्रमुख दवाएं उपलब्ध ही नहीं हैं। विभागीय अधिकारियों का दावा है कि अभी दूसरे मरीजों की दवाओं को एडजस्ट करके काम चलाया जा रहा है। हालांकि ऐसा ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता है। यही स्थिति रही तो आगामी दस दिनों में दवाओं की ओर किल्लत बढ़ जाएगी।
इन स्टेजों पर चलती हैं दवाएं
आईपी(इंटेंसिव फेज) की दवाएं दो महीने की होती हैं और सीपी (काउंटनिवेशन फेज) का उपचार चार महीने का होता है। इस तरह कुल छह महीने का उपचार होता है। इसमें अगर मरीज ठीक नहीं हुआ तो वह एमडीआर स्टेज में पहुंच जाता है। एमडीआर का उपचार नौ से 18 माह का होता है।
इसलिए होती है एमडीआर टीबी और ये हैं लक्षण
इलाज का कोर्स पूरा न करने की वजह से। गलत तरीके से दवाओं के सेवन से। दवाओं की गुणवत्ता ठीक न होने पर। टीबी की दवाएं नियमित रूप से न लेने से।
लगातार खांसी और बलगम आना, खांसते समय खून आना, भूख न लगना, हल्का बुखार, सीने में दर्द, वजन कम होना व हल्का बुखार आना आदि टीबी के लक्षण हैं।
बंद पड़ी एक्सरे मशीन
क्षय रोगियों के इलाज के दौरान सबसे ज्यादा एक्सरे कराने की आवश्यकता पड़ती है। इसके बावजूद शहर के टीबी अस्पताल में एक्सरे मशीन खराब है। ऐसे में मरीजों को टीबी अस्पताल से करीब एक किलोमीटर दूर जिला अस्पताल एक्सरे के लिए भेजा जाता है। वहां कई दिन चक्कर लगाने के बाद उनका एक्सरे हो पाता है। जल्दी होने पर मरीज बाहर से लैबों से रुपये खर्च कर जांच कराने को मजबूर होते हैं।
वर्जन
कुछ दवाओं की पूरे प्रदेश में ही कमी है। हालांकि शासनादेश के अनुरूप स्थानीय रूप से दवाओं की खरीदारी की प्रक्रिया चल रही है। वहीं, एक्सरे मशीन में दो तीन दिन पहले तकनीकी खामी आ गई थी जिसे सही कराया जा रहा है एक दो दिन में वह भी सही ढ़ंग से कार्य करने लगेगी। -डाॅ. शिवचरन, जिला क्षय रोग अधिकारी