चकरनगर। बया पक्षी दुनिया भर में अपने सुंदर घोसलों के लिए जाना जाता है। जुगनुओं की रोशनी से अपने घोंसले सजाने वाले ये पक्षी घर बनाने के लिए सबसे ज्यादा मेहनत करते हैं। हल्के पीले रंग का बया बुनकर प्रजाति का एक नन्हा सा पक्षी, घास के छोटे-छोटे तिनकों और पत्तियों से खुबसूरत घोंसले का निर्माण करता है। बया को पक्षियों का विश्वकर्मा एवं इंजीनियर भी कहा जाता है।
पक्षी प्रेमी राजीव चौहान बताते हैं कि बया को पक्षियों का शाहजहां कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। क्योंकि जिस तरह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज के लिए सुंदर ताजमहल बनवाया था। उसी तरह नर बया मादा को रिझाने के लिए खूबसूरत घोंसला बनाता है। एक तो खुद पक्षी खूबसूरत, उस पर उसका घर लुभावना होने से जो देखता है तो बस देखता ही रह जाता है। मादा बया पक्षी इनका चयन करता है। मधुर आवाज निकालकर और पंखों को हिलाकर नर पक्षी मादा को आकर्षित और रिझाने का कार्य करता है।
जानकार बताते हैं कि कई बार मादा के घोंसला पसंद न करने पर नर बया उसे खुद ही नष्ट कर देता है। बया पक्षी जुलाई से दिसंबर के बीच सिर्फ एक बार कांटेदार रेमजा, बबूल, ताड़, बेर, खजूर या नारियल के पेड़ पर घोंसला बनाते हैं। इनका प्रजनन काल मानसून का समय होता है। इन दिनों बया के परिवार में नन्हे मेहमानों की किलकारियां गूंज रही हैं। चंबल के आसपास लगे कंटीली झाड़ियों पर नजर डालें तो कई सुंदर घोंसले और उनमें बसे नन्हे मेहमानों की ची-ची करती आवाज सुनाई देती है। पिछले साल की तुलना में इस बार बया पक्षियों ने बीहड़ क्षेत्र के चकरनगर अधिक घोंसले बनाए हैं। सगरा, मितरौल, बंसरी, भरेह, विठौली, सहसों, सिरसा, टिटावली गांवों के किनारे जंगल में पांच सौ से अधिक बया पक्षियों ने अपने घोंसले बनाए हैं।
इंसानों की तरह जीवन जीता है बया पक्षी::::
बया पक्षी के घोसलों में दो कक्ष होते हैं। इसमें एक अंडा और दूसरा शयन कक्ष होता है। घोंसले का दरवाजा नीचे की तरफ खुलता है। इसमें एक अथवा कभी-कभी दो दरवाजे भी होते हैं। सामाजिक पक्षी होने के कारण इस प्रजाति में अनेकों घोंसले एक साथ पेड़ और कंटीली झाड़ियों पर देखने को मिलेंगे। बया पक्षी अकेला अपना घोंसला नहीं बनाते बल्कि एक साथ अनेकों घोंसले समूह में बनाते हैं। यह पक्षी एक बस्ती की तरह रहते हैं, जो इंसान की बस्तियों की तरह अपने घरों का निर्माण कर सामाजिक और एकजुटता का संदेश देता है।
संघर्ष करने की प्रेरणा देता है बया:::::
टिटावली कंपोजिट विद्यालय के प्रधानाध्यापक एवं पक्षी प्रेमी जितेंद्र यादव कहते हैं कि बया पक्षी संघर्ष करने की प्रेरणा देता है। वह अपना घोंसला बनाता है तो घर बसाने के लिए, मगर कुछ दिन तक ही उसमें रह पाता है। संघर्ष की लंबी दास्तां छोड़ जाता है। एक-एक पत्ती लाने के लिए काफी मेहनत करता है। इंसानों के लिए यह पक्षी प्रेरणा का काम करता है।
वर्जन
एक अक्तूबर से वर्ल्ड लाइफ शुरू हो रहा है। बया के संरक्षण के लिए विशेष अभियान चलाकर लोगों को जागरूक किया जाएगा। इटावा में एनजीओ रेलवे अधिकारियों के सामंजस्य से लोगों को जागरूक करेगा। अगर एनजीओ के लोग बया की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ अलग से करना चाहे तो बताएं कि इसमें उनकी कैसे मदद की जाए। – आरुषि मिश्रा, चंबल सेंचुरी, डीएफओ आगरा