इटावा। शारदीय नवरात्र रविवार से शुरू हो रहे हैं। इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। मां का वाहन हाथी ज्ञान व समृद्धि का प्रतीक है। हाथी पर सवार होकर मां दुर्गा अपने साथ ढेर सारी खुशियां और सुख-समृद्धि लेकर आएंगी। इससे देश में आर्थिक समृद्धि आएगी, साथ ही ज्ञान की वृद्धि होगी। ऐसे में आने वाले में साल में बहुत ही शुभ कार्य होंगे। लोगों के बिगड़े काम बनेंगे। माता रानी की पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों पर विशेष कृपा बरसेगी।

क्वार महीने में पड़ने वाली शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है। अखंड ज्योति जलाई जाती है हर स्वरूप की अलग महिमा होती है। आदिशक्ति जगदंबा के हर स्वरूप से अलग-अलग मनोरथ पूर्ण होते हैं। यह पर्व नारी शक्ति की आराधना का पर्व है। भक्त नौ दिनों का व्रत रखते हैं। दुर्गा पंडालों में गरबा और डांडिया का आयोजन किया जाता है।

नवरात्र में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

ज्योतिषाचार्य राजीव अग्रवाल ने बताया कि शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा तिथि को पहले दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 15 अक्तूबर को दिन में 11:44 बजे से दोपहर 12:30 तक है। यानी कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 46 मिनट ही रहेगा। घट स्थापना मुहूर्त सुबह 06:30 बजे से लेकर 08:47 बजे तक है। अभिजित मुहूर्त दिन में 11:44 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक अभिजित मुहूर्त में देवी की स्थापना सबसे शुभ मानी जाती है।

देवी मां को गुड़हल, गेंदा और कमल चढ़ाने की है परंपरा

चकरनगर प्रतिनिधि के अनुसार, ज्योतिष एवं भगवताचार्य मयंक चतुर्वेदी ने बताया कि नवरात्र में देवी मां के चरणों में किसी भी तरह का फूल चढ़ाने की जगह उन फूलों को अर्पित करें, जो उन्हें बहुत प्रिय है। ऐसा करने पर माता भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी करेंगी। बताया कि मां शैलपुत्री को गुड़हल, ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा सेवंती या वट वृक्ष के पुष्प से करें। चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा कमल के फूल और शंखपुष्पी के फूल से करें। मां कूष्मांडा को चमेली के फूल या पीले रंग के पुष्प अर्पित करें। स्कंदमाता को पीले फूल अर्पित करें। मां कात्यायनी को गेंदा का फूल अर्पित करें। कालरात्रि देवी को कृष्ण कमल के फूल चढ़ाएं। मां महागौरी की पूजा मोगरे से करें। मां सिद्धिदात्री की पूजा चंपा के फूलों से करें।

सिद्धपीठ काली बांह मंदिर

काली बांह मंदिर के प्रवेश द्वार से मंदिर तक जाने का करीब पांच सौ मीटर का रास्ता डबल लेन का है। एक ओर से श्रद्धालु जाते हैं और दूसरी ओर से लौटते हैं। मंदिर से कुछ दूरी पर दोनों ओर पूजा और प्रसाद सामग्री की दुकानें लगी हैं। नवरात्र में भक्तों को लाइन लगाकर दर्शन करने पड़ते हैं। महिलाओं और पुरुषों की अलग- अलग लाइनें लगती हैं। मंदिर के पुजारी विजय गिरि ने बताया कि नवरात्र में चार बार आरती की जाती है और हर बार श्रृंगार माता रानी का श्रृंगार किया जाता है। नवरात्र में पहली आरती तड़के तीन बजे होती है। इसके बाद दूसरी आरती शाम पांच बजे, तीसरी शाम चार और चौथी रात नौ बजे होती है। 26 अक्तूबर को द्वादशी के दिन फूल बंगला बनाकर माता रानी को 56 भोग लगाया जाएगा। उन्होंने श्रद्धालुओं से मंदिर में मर्यादित कपड़े पहनकर ही प्रवेश करने की अपील की है।

सिद्धपीठ ब्रह्माणी देवी मंदिर

जसवंतनगर तहसील मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर बलरई स्थित ब्रह्माणी देवी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इस देवी मंदिर की मान्यता काफी अधिक है। श्रद्धालु जयकारे और देवी गीत गाते हुए कंधों पर झंडा रखकर चढ़ाने आते हैं। कुछ श्रद्धालु दंडवत होकर मंदिर तक की दूरी नापते हुए पहुंचते हैं। महिलाएं समूह में नाचते व लंगुरिया गीत गाते हुए देवी का दर्शन करने आती हैं। मंदिर के पुजारी भोले मिश्रा ने बताया कि मंदिर में सुबह और शाम सात बजे आरती होती है। जिसमें ब़ड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। ब्रह्माणी देवी मंदिर का करीब एक किलोमीटर दूर पहले से ही धार्मिक वातावरण दिखाई देने लगता है। मंदिर के बाहर नवरात्र मेला आयोजित होता है। नवमी के दिन श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है।

सिद्धपीठ कालिका देवी मंदिर

लखना स्थित मां कालिका देवी मंदिर जाने के लिए श्रद्धालु बकेवर चौराहा से लखना-चकरनगर बाईपास होकर तीन किलोमीटर का रास्ता तय करके जाना पड़ता है। इसी प्रकार चकरनगर के श्रद्धालु बाईपास तिराहा से आते हैं। मंदिर में दर्शन करने के लिए जिले भर के ही नहीं बल्कि आसपास के जनपदों व अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं। पुजारी विनोद चौबे ने बताया कि कालिका देवी ब्राह्मणों की कुल देवी हैं। इटावा, औरैया, कानपुर नगर और कानपुर देहात आदि से श्रद्धालु आते हैं। यहां बच्चों का मुंडन कराए जाते हैं औ नव विवाहित जोड़े दर्शन और पूजा करने आते हैं। मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु छोटे बड़े वाहनों से आते हैं।



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