इटावा। लापरवाही और धांधली जिले के राजस्व को नुकसान पहुंचाने का काम कर रही है। नगर पालिका इटावा समेत दो शिक्षण संस्थानों ने 2015 से लेकर 2018 तक करीब 53 लाख रुपये का नुकसान पहुंचाया है। इसका खुलासा स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग उत्तर प्रदेश प्रयागराज की रिपोर्ट में हुआ है।

विकास कार्यों को लेकर अक्सर बजट का रोना रोने वाली नगर पालिका के जिम्मेदारों की लापरवाही ने करीब छह साल पहले बड़े नुकसान कराए हैं। वर्ष 2016-17 में निर्माण कार्यों में मिट्टी भराई कार्य कई जगह कराया गया। इसमें जिम्मेदारों की मनमानी के चलते नगर पालिका की बड़ी क्षति हुई है। रॉयल्टी की कटौती करके 30 रुपये प्रति घनमीटर की जगह 14 रुपये घन मीटर में आधे से भी कम दामों पर किए जाने से 15 लाख 76 हजार 493 रुपये की राजस्व क्षति हुई थी।

वहीं नगर पालिका क्षेत्र में संचालित क्लीनिक और अस्पतालों के लाइसेंस का काम भी धीमी गति से होने की वजह से 2016-17 में 18 लाख रुपये का नगर पालिका को नुकसान हुआ था। इसके बावजूद बीते सालों में भी इसकी रफ्तार बहुत धीमी रही। इस साल में ही 29 अस्पतालों व क्लीनिकों को लाइसेंस मिला है जबकि जिले में स्वास्थ्य विभाग के ही आंकड़ों के अनुसार, करीब पांच गुने 167 अस्पताल और क्लीनिक जिले में संचालित हैं।

ईओ विनय कुमार मणी त्रिपाठी ने बताया कि मिट्टी डलवाने में बरती गई अनियमितता के संबंध में जानकारी नहीं है। इस बारे में जानकारी कराकर स्थानीय स्तर पर भी जांच कराई जाएगी। वहीं अस्पतालों और क्लीनिकों के संचालकों को लगातार लाइसेंस लेने के लिए नोटिस दिए जा रहे हैं। किसी भी हाल में आर्थिक नुकसान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

रिपोर्ट में शहर के कर्म क्षेत्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय का भी एक मामला प्रकाश में आया है। इसमें शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को एसीपी के तहत अनुमन्य अगली ग्रेड पे के स्थान पर अनियमित एवं त्रुटिपूर्ण वेतन निर्धारण करके पदोन्नति पद का ग्रेड पे दिया गया था। इसका करीब 10 कर्मचारियों ने लाभ लिया था। बताते हैं कि यह आदेश निदेशक स्तर से प्रदेश के सभी विवि के लिए 2016-17 में किया गया था। इसके तहत ही केके कॉलेज के भी कर्मचारियों को पदोन्नति दी गई थी।

अनियमितता सामने आने पर निदेशक स्तर से इस आदेश को रद्द करके सभी को रिवर्ट करने के भी आदेश दिए थे, लेकिन इस पर कर्मचारी यूनियनों ने उस समय क्षेत्रीय कार्यालयों पर धरना प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। इस पर निदेशक की ओर से कमेटी बनाकर निर्णय लेने के आदेश दिए थे। तब से यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। प्राचार्य डॉ. महेंद्र ने बताया कि इस संबंध रिकवरी को लेकर अभी तक कोई भी उच्चाधिकारियों के पास से आदेश नहीं आया है। आदेश मिलने पर नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी।

ज्ञान चंद्र जैन वैश्य इंटर कॉलेज इकदिल के भी एक मामले का जिक्र रिपोर्ट में किया गया है। इसमें बताया कि वर्ष 2014-15 से 2017-18 के बीच विद्यालय के एक लिपिक ने विभिन्न निधियों के लिए प्राप्त धनराशि को संस्था के खाते में नहीं जमा कराया था। इससे करीब इससे करीब पांच लाख 48 हजार रुपये का संस्था को नुकसान हुआ था। बताते हैं कि मामला संज्ञान में आने के बाद जांच कराकर आरोपी लिपिक को निलंबित किया गया था। साथ ही उनसे पूरे रुपये की रिकवरी भी की गई थी। इस बीच ही वह 2017 में सेवानिवृत्त भी हो गए थे।



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