इटावा। आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं की मदद के लिए चलाई जा रही छात्रवृत्ति योजना का लाभ ज्यादातर छात्र-छात्राओं को नहीं मिल रहा है। सत्र 2022-23 में 60 फीसदी छात्राएं छात्रवृत्ति से वंचित हैं। ऐसे में उनको दाखिला लेने से लेकर किताबें, यूनिफॉर्म बनवाने तक में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

2022-23 में नौवीं से लेकर 12 वीं तक लगभग 80 हजार छात्र पंजीकृत थे। इनमें से लगभग 50 प्रतिशत विद्यार्थियों ने छात्रवृत्ति के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था। 12वीं के विद्यार्थियों को 2700 और 10 वीं के विद्यार्थियों को 3000 रुपये शुल्क प्रतिपूर्ति व छात्रवृत्ति के रूप में दिए जाते हैं। पूरा सत्र बीतने के बाद भी सिर्फ 16 हजार विद्यार्थियों की ही छात्रवृत्ति उनके खाते में आई। लगभग 24 हजार विद्यार्थियों का पूरा सत्र छात्रवृत्ति की आस में ही कट गया। यही वजह है कि अगले सत्र में दाखिला लेने तक के लिए कुछ विद्यार्थियों को विचार करना पड़ा। कई विद्यार्थियों ने अपने सहयोगी, परिजनों के सहयोग या स्कूल के शिक्षकों के सहयोग से दाखिला ले लिया, लेकिन बड़ी संख्या छात्र दाखिला तक नहीं ले सके। वहीं दाखिला ले चुके छात्रों को कॉपी-किताबें खरीदने में भी परेशानी झेलनी पड़ रही है।

सीधे लखनऊ से व्यवस्थाएं चलने से बिगड़ा काम

शिक्षा विभाग और समाज कल्याण विभाग के जिम्मेदारों के अनुसार, पहले छात्रवृत्ति के लिए सारी प्रक्रियाएं जिला स्तर पर ही होती थीं। छात्र-छात्राओं के फार्म आदि यहीं पर जमा कराए जाते थे। कोई त्रुटि होने पर उसमें संशोधन करा लिया जाता था। तीन साल से अब पूरी व्यवस्था ऑनलाइन हो गई है। ऐसे में छात्रों की ओर से ऑनलाइन ही आवेदन किया जाता है। कॉलेज सिर्फ उसे समाज विभाग कल्याण विभाग को भेज देता है। यहां से शासन को रिपोर्ट भेज दी जाती है। संशोधन के लिए लखनऊ से ही एक बार साइट खोलकर मौका दिया जाता है, लेकिन जागरूकता के अभाव और सर्वर की दिक्कतों की वजह से बड़ी संख्या में छात्र संशोधन नहीं कर पाते हैं। ऐसे में उनको छात्रवृत्ति नहीं मिल पाई है।

स्नातक और परास्नातक में किसी को भी नहीं मिला लाभ

स्नातक और परास्नातक के जिले में लगभग 25 हजार छात्र-छात्राएं हैं। 2022-23 इनमें से लगभग 15 हजार छात्र-छात्राओं ने भी छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया था। इनमें से किसी भी छात्र-छात्रा को लाभ नहीं मिल सका। इसके पीछे का कारण शासन की ओर से बनाई गई नई व्यवस्था रही है। 2021-22 के सत्र तक ऑनलाइन आवेदन के बाद प्रिंट आउट महाविद्यालय में जमा करने के बाद सत्यापन करते हुए महाविद्यालय समाज कल्याण विभाग को भेज देता था। समाज कल्याण विभाग की ओर से सत्यापन करके शासन को भेज दिया जाता था। इस सत्र से एक चरण सत्यापन का शासन की ओर से और बढ़ा दिया गया। इसके तहत रेग्युलेटिंग एजेंसी (कॉलेज के लिए विवि, बीटीसी के लिए परीक्षा नियंत्रक कार्यालय इलाहाबाद) को महाविद्यालय के सत्यापन के बाद समाज कल्याण विभाग को रिपोर्ट देनी थी। बताते हैं कि इस व्यवस्था को लेकर कोई निर्देश स्पष्ट न होने की वजह से यह प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो सकी। बाद में जानकारी होने पर शासन की ओर से एससी छात्रों को तो छात्रवृत्ति देने के लिए फिर एक बार महाविद्यालय से रिपोर्ट मांगी गई है, लेकिन ओबीसी और जनरल के लिए कोई निर्देश नहीं आए हैं। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं को 2022-23 के सत्र में दाखिला लेने के लिए भी परेशानी का सामना करना पड़ा।



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