देश हित से बड़ कर कुछ नहीं हमारी क़लम एक सच्चाई अवगत कराया धर्म है। कोई जाति या पार्टी के खिलाफ नहीं है।✍️

       वक़्फ़ बिल एक्ट बनने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। कितने उतावले हैं.?                                                                            


वक़्फ़ बोर्ड एक दाग था, और न्यायपालिका पर भी दाग लगा हुआ है, मीलॉड सोच समझ क निर्णय करें
कल राष्ट्रपति ने वक़्फ़ संशोधन बिल को संसद से पास होने के बाद मंजूरी दी है लेकिन उसके पहले ही ओवै.. और कांग्र के मोहम्म. ने सुप्रीम कोर्ट में बिल को ही चुनौती दे दी.!!

जो किसी मायने में उचित नहीं थी।
आइए दो मिनट लगेगा, में समझाता हूँ।अनेक लोग कह रहे हैं कि ओवै.. समेत बड़े बड़े मुस्ल. नेताओं ने वक़्फ़ की संपत्तियों पर कब्ज़ा किया हुआ है।

एक मौला.. तो कह रहा था मुस्ल.. संगठनों के किसी भी व्यक्ति की संपत्ति देख लो सबमे गड़बड़झाला मिलेगा।

एक तरफ मुस्ल. नेता मुसलमानों को सड़कों पर उतरने के लिए भड़का रहे हैं और यह काम कांग्रेस नेतृत्व भी कर रहा है।

और दूसरी तरफ ये कोर्ट में भी लड़ना चाहते हैं…
कई राज्यों में मुस्लि. वक़्फ़ बिल के पास होने पर जश्न भी मना रहे हैं।इसमें तो कोई शक नहीं है कि वक़्फ़ की संपत्तियों में जमकर घोटाला हुआ है और किसी गरीब मुसलमान को कुछ नहीं मिला।

यानी यह मुस्लिम समाज के लिए भी एक दाग था जिसे मिटाने के लिए कुछ संशोधन किए गए हैं।

लेकिन अब मामला न्यायपालिका के पास गया है और यह नहीं भूलना चाहिए कि आज न्यायपालिका स्वयं कलंकित है…

खासकर यशवंत वर्मा के घर से मिले धन के बाद..
वैसे सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय संदेह के घेरे में रहे है। केजरीवाल की जमानत में यह कैसे मान लिया जाए कि कोई सौदेबाजी नहीं हुई..?

क्योंकि उसके लिए संजीव खन्ना ने जो 3 जजों की बेंच बनाने के लिए कहा था वह 9 महीने बाद भी नहीं बनी है। ठीक चुनाव से पहले इलेक्टोरल बांड्स पर चंद्रचूड़ का निर्णय देकर सात साल बाद उन्हें असंवैधानिक कहना अपने आप में संदेह पैदा करता था…

और वह संदेह तब और पुख्ता हो गया जब अमेरिका से 182 करोड़ रुपया भारत में अस्थिरता फ़ैलाने के लिए भेजने की बात सामने आई..

एक तरफ सुप्रीम कोर्ट कहता है कि अवैध निर्माण गिराना गलत नहीं है और दूसरी तरफ ऐसे निर्माणों को बनाने के लिए बढ़ावा देता है।

हल्द्वानी के बनफूलपुरा में रेलवे लाइन पर हजारो लोगों के कब्जे को गिराने पर जनवरी, 2023 में रोक लगा दी और तब से कोई सुनवाई नहीं हो रही।चंद्रचूड़ ने Places of Worship act में किसी सर्वे पर रोक ना लगाने की बात कही थी और कहा था कि यह एक्ट सर्वे करने से नहीं रोकता लेकिन संजीव खन्ना ने चीफ जस्टिस बनकर सभी सर्वे बंद करा दिए,

चल रहे मुकदमों की सुनवाई रोक दी और कोई भी फैसला सुनाने से मना कर दिया जब तक इस पर सुप्रीम कोर्ट फैसला न सुना दे।

याद रहे यह मामला 2020 से चल रहा है जिसका मतलब है पंचवर्षीय योजना पूरी हो गई और अब अगली पंचवर्षीय योजना शुरू कर दी गई है।इसलिए सुप्रीम कोर्ट को वक़्फ़ मामले में संसद के अधिकारों से टकराने से पहले 50 बार सोच लेना चाहिए…

अभी पहले ही सुप्रीम कोर्ट के जज दबाव में हैं जो अपनी संपत्तियों की घोषणा करने की बात कर रहे हैं।

उपराष्ट्रपति धनखड़ कई बार कह चुके है कि न्यायपालिका के पास  विधायिका की कानून बनाने के शक्तियां नहीं है, वे केवल विधायिका और कार्यपालिका का काम है।

इसलिए कोर्ट एक्ट को खारिज करने की भूल न करेबिलकुल सही बात है।

सुप्रीम कोर्ट को वक़्फ़ एक्ट पर सुनवाई करते समय यह नहीं भूलना चाहिए कि वह संसद से ऊपर नहीं है।
संविधान ने विधायिका को कानून बनाने का अधिकार दिया है, और न्यायपालिका को केवल यह देखने का अधिकार कि वह संविधान के अनुरूप है या नहीं — विचारधारा से प्रेरित होकर उसे खारिज करने का नहीं।

आज जब सुप्रीम कोर्ट के जज अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने की बात कर रहे हैं,
जब न्यायपालिका पर भी पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग उठ रही है,
तब यदि कोर्ट संसद के अधिकार क्षेत्र में दखल देगा —
तो जनविश्वास और भी कमजोर होगा।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ स्पष्ट कह चुके हैं —
“न्यायपालिका विधायिका के अधिकारों पर अतिक्रमण नहीं कर सकती।”

इसलिए वक़्फ़ संशोधन कानून को खारिज करने की भूल करना न सिर्फ संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ होगा,
बल्कि देश की लोकतांत्रिक नींव पर भी आघात होगा।

लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च है — यह बात हर संस्था को याद रखनी चाहिए।न्यायपालिका बहुत दिनों से कार्यपालिका के काम में दखल देने की पूरी पूरी कोशिश कर रही है।

राम मंदिर की 40 एकर जमीन पर सबको हॉस्पिटल और कॉलेज चाहिए था,
वक्फ बोर्ड के लाखो एकड़ जमीन पर किसी को कुछ नहीं चाहिए?लोकतंत्र में सर्वोच्च संविधान है और कोई भी संवैधानिक संस्था चाहे वो कार्यपालिका हो जो विधायिका लाने के लिए अधिकृत है उसे अगर न्यायपालिका में प्रस्तुति देने के लिए कहा जाता है तो कार्यपालिका को संवधित विवादित विधायिका के पक्ष में अपने राय रखने से संकोच नहीं करना चाहिए !इससे कार्यपालिका की गरिमा में ठेस नहीं पहुंचता है। हमारे देश के शासन व्यवस्था में न्यायपालिका का भुमिका सिर्फ सज़ा सुनाने भर के नहीं है राय देने की भी है। विवादित संसोधन को जिस विधायिका में संसद द्वारा पारित किया गया वह संवैधानिक मापदंडो को पूरा करता है कि नहीं इसका निर्णयसंसद नहीं ले सकता ये न्यायपालिका का अधिकार क्षेत्र में आता है। महामहिम की रहा अपमान की बात तो ये सबको मालूम है न्यायपालिका हो या कार्यपालिका दोनों ही को महामहिम राष्ट्रपति के संरक्षण और प्रसन्नता प्राप्त है। तो इन दोनों संवैधानिक संस्थाओं में कोई प्रतियोगिता नहीं हैआजादी के बाद से ही सरकारी मशीनरी में एक “सिस्टम” बन गया है जिसकी जड़े गहराती गई है। कई विभागों की हर सीट पर सिस्टम का एक पैसा जनरेट होता है….. क्या न्यायपालिका में भी सिस्टम पैसा जनरेट करता है? जज के पास बैठा पेशकर हर तारीख लगाने के, फाइल ढूंढने के पैसे लेता है, जो सर्वविदित है। बिना रसीद की ली जाने वाली इस राशि को कहां वितरित/संग्रहीत किया जाता है?
और एक बात जज बनने के लिए कुछ साल वकालत भी जरूरी है, वकील न्याय नहीं, अपने लाभ और मुवक्किल के लिए सफेद को काला, काले को सफेद करते है…. तो क्या ….बिलकुल सटीक बात है।

चंद्रचूड़ की बेंच ने साफ कहा था कि Places of Worship Act, 1991 सर्वे को नहीं रोकता —
सर्वे सच्चाई जानने का माध्यम है, न कि किसी धर्मस्थल को बदलने का।

लेकिन जैसे ही संजीव खन्ना चीफ जस्टिस बने,
सारी दिशा ही बदल गई —
हर सर्वे पर रोक,
सभी चल रही सुनवाइयों पर ब्रेक,
और आदेश दे दिया कि कोई निचली अदालत फैसला सुनाए ही नहीं जब तक सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला न आ जाए।

अब सोचिए —
यह केस 2020 से लंबित है,
यानि एक पंचवर्षीय कार्यकाल पूरा,
और अब “नई पंचवर्षीय योजना” शुरू हो गई।

सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि सुनवाई क्यों रोकी गई,
सवाल ये है कि क्या सुप्रीम कोर्ट का ये रवैया जनता के विश्वास और न्याय की बुनियाद को डगमगा नहीं रहा है?

क्या न्याय अब जनभावनाओं के खिलाफ जाकर सत्ता समीकरण साध रहा है?

ये केवल एक केस नहीं,
भारत के न्यायिक चरित्र की परीक्षा है।पूर्व के सरकारों ने ही न्यायपालिका को सिर पर चढ़ाया हुआ है, सरकारें चाहती तो तो न्यायपालिका को नख दंत विहीन कर सकती थी, क्योंकि न्यायपालिका के पास जबानी खर्च करने के अलावा कोई काम नहीं है,जजों के आदेश का पालन तो सरकारी सिस्टम ही करता है,मत करो पालन, क्या कर लेगा न्यायपालिकापूर्व के सरकारों ने ही न्यायपालिका को सिर पर चढ़ाया हुआ है, सरकारें चाहती तो तो न्यायपालिका को नख दंत विहीन कर सकती थी, क्योंकि न्यायपालिका के पास जबानी खर्च करने के अलावा कोई काम नहीं है,जजों के आदेश का पालन तो सरकारी सिस्टम ही करता है,मत करो पालन, क्या कर लेगा न्यायपालिकान्यायपालिका संसद के कामों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। संसद द्वारा बनाये गए कानून के खिलाफ याचिका को तो स्वीकार ही नहीं किया जाना चाहिए।जब निर्णय ही कोर्ट को देना है तो संसद की जरूरत ही क्या है। क्यों अरबों रुपए चुनाव पर खर्च करना। सारे कानून न्यायपालिका को ही बना देना चाहिए।बिलकुल, ये संयोग नहीं, पूरी रणनीति लगती है।

चुनाव से ऐन पहले
इलेक्टोरल बॉन्ड्स को असंवैधानिक घोषित करना —
सात साल तक चुप रहने के बाद,
और ठीक उसी वक्त जब भारत में चुनाव की गूंज हो,
ये फैसला कहीं न कहीं “राजनीतिक टाइमिंग” का संकेत देता है।

और जब अमेरिका से 182 करोड़ रुपये भारत में “अस्थिरता” फैलाने के लिए आए हों,
तो फिर ये सवाल और गंभीर हो जाता है:
क्या भारत की न्यायिक व्यवस्था भी इस वैश्विक एजेंडे का हिस्सा बन चुकी है?

उधर, बनफूलपुरा हल्द्वानी में हजारों की संख्या में अवैध कब्जे,
रेलवे की ज़मीन पर बनी बस्तियाँ —
जिन्हें कोर्ट ने खुद कहा था कि गिराना गलत नहीं है,
लेकिन जनवरी 2023 से कार्रवाई पर रोक, और अब तक सुनवाई भी नहीं!

फिर सवाल उठना लाज़मी है —
क्या कानून अब “धर्म और वोटबैंक” देखकर लागू होगा?
क्या सुप्रीम कोर्ट भी अब राजनीतिक समीकरणों में उलझ गया है?

यह न्याय नहीं —
यह न्यायपालिका का राजनीतिकरण है।
और जब सत्ता, सड़क और न्यायपालिका — तीनों में एक ही खेल दिखे,
जनता का आक्रोश एक दिन फूटेगा जरूर।                         सरकार के सकारात्मक कार्यों में अड़ंगा लगाना ही उद्देश्य है।यह राष्ट्रीय हित में बाधक है।                                                विरोधी नेता और माननीय अपने नकारात्मक उद्देश्य हेतु कर रहे हैं।                                                                         हमारी क़लम किसी पार्टी के खिलाफ नहीं है लेकिन सच्चाई अवगत करवाया हमारा कार्य …..✍️ अमारी क़लम देश हित में जारी रहेगी

By Parvat Singh Badal (Bureau Chief) Jalaun✍️

A2Z NEWS UP Parvat singh badal (Bureau Chief) Jalaun ✍🏻

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