अमौली। स्वास्थ्य विभाग गांव-गांव कैंप कर रहा है लेकिन संक्रामक रोगों पर लगाम नहीं लग रही है। प्रत्येक गांव में 40 से 50 मरीज बुखार से जूझ रहे हैं। अन्य बीमारियों को मिला दें, तो मरीजों की संख्या 100 के पार हो रही है। भले ही कैंप में मरीजों की संख्या 60 से 70 रहती है, लेकिन उतने ही मरीज झोलाछाप और बाहर इलाज करा रहे हैं। जब चार गांवों की पड़ताल की गई तो हकीकत सामने आई। पेश है रिपोर्ट…
आजमपुर गड़वा में शिव दुलारी पत्नी अमृत लाल दिवाकर, सोनम पत्नी धर्मेश, लालगुड्डी पत्नी जयराम, पूजा पत्नी जिद्दी शर्मा, रामऔतार विश्वकर्मा, कुलदीप कुमार, वंशगोपाल, तुलसी, संदीप, रूपा देवी पुत्री स्व. रज्जू सहित 25 लोग बुखार से पीड़ित मिले। शिव दुलारी और चंदन को घर पर ही ड्रिप लगी है। ग्रामीणों ने बताया कि एक माह पूर्व कैंप लगा था। प्राय: सभी लोग स्थानीय स्तर पर ही इलाज करा रहे हैं।
हुसेनाबाद में भगौती वर्मा, सौरभपाल, लल्ली देवी, कौशल, रामावती, धर्मेंद्र कुमार, राकेश, आशा, अनूप, गुडिया, हीरा, रानी, दीपेश पुत्र रामानंद, विनायक पुत्र रामबाबू, रिंग देवी पुत्री अरविंद कुमार सहित 22 लोग बुखार से पीड़ित हैं। सौरभ को अमौली में प्राइवेट अस्पताल में ड्रिप लगाई जा रही है और लली देवी का घर में ही ड्रिप लगा कर इलाज किया जा रहा है। यहां पर भी 50 लोग बुखार के अलावा जुकाम, खुजली, बदन दर्द जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं। जो स्थानीय स्तर पर ही इलाज करा रहे हैं।
यमुना किनारे बसा जनपद का अंतिम गांव परसेढा में लल्लू तिवारी, जमीला पत्नी गुलाब खान, मयंक द्विवेदी पुत्र अमित द्विवेदी, सुरेश शुक्ला, गौरी पुत्री शशिकांत, क्षमा पुत्री सत्येंद्र, सत्यवती पत्नी रक्षपाल सहित 20 से भी अधिक लोग बुखार से पीड़ित हैं, जो स्थानीय स्तर पर ही इलाज करा रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार एक माह पूर्व कैंप लगा था, इसके बाद कोई ध्यान नहीं दिया गया।
यमुना के किनारे धाना गांव में ज्ञानश्री व उनके पति पृथ्वीपाल दोनों बुखार की चपेट में हैं। सुदामा पत्नी ओमप्रकाश, मानसी देवी पुत्री रामबहादुर, असविन पुत्र रामशंकर, सूबेदार, गयाराम, गिरिजा पत्नी छोटेलाल, सुशीला पत्नी राकेश सहित 20 से भी अधिक लोग बुखार से पीड़ित हैं। इनका स्थानीय स्तर पर ही इलाज हो रहा। पूर्व प्रधान राम शंकर ने बताया कि दो वर्षों से एंटी लारवा का छिड़काव या फागिंग जैसी कोई व्यवस्था नहीं की गई। इसीलिए बुखार व अन्य बीमारियों से लोग ग्रसित हैं।
दिन में लोग धूप में काम करते हैं, पानी कम पीते हैं। रात में ओस में लेटते हैं, जिससे सीजनल बुखार आ जाता है। ग्रामीण झोलाछापों से दवा लेते हैं। बगैर जांच के दवा खाते हैं, जो नुकसानदायक है। प्रधानों या आशा की सूचना पर कैंप लगाए जा रहे हैं और ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है।
– डॉ. पुष्कर कटियार, चिकित्साधीक्षक।