फतेहपुर। जिला अस्पताल के डाॅक्टर प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्रों की दवा लिखने से परहेज कर रहे। कुछ डाॅक्टरों को छोड़ दें तो ज्यादातर चिकित्सक मेडिकल स्टोर की दवा लिख रहे हैं। हर डाॅक्टर के कक्ष में दवा कंपनियों के एजेंटों का बैठना है। दवा कंपनियों से मिलने वाले उपहार व कमीशन डाॅक्टरों के चक्कर में लोगों को सस्ती दवाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

जिला पुरुष और महिला अस्पतालों में प्रतिदिन औसतन 1800 रोगियों का पंजीयन हो रहा है। रोगियों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने जिला पुरुष और महिला अस्पताल में अलग-अलग प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र खोले हैं। दोनों औषधि केंद्रों में मिलाकर प्रतिदिन सिर्फ 15 से 16 हजार की दवाएं बिक रही हैं, जबकि जिला अस्पताल के सामने मेडिकल स्टोरों की बिक्री प्रति दिन एक लाख से भी ज्यादा है है। इससे स्पष्ट है कि डाॅक्टर जनऔषधि केंद्र की दवाएं लिखने से बच रहे हैं।

जनऔषधि केंद्रों में करीब एक हजार तरह की दवाओं का स्टाॅक है, लेकिन डाॅक्टर मरीजों को दवाएं नाम से लिखते हैं, जबकि जन औषधि केंद्र की दवाओं की बिक्री साल्ट से होती है। अगर डाॅक्टर किसी भी दवा का साल्ट पर्चे पर अंकित कर दें, तो वह उसे जन औषधि केंद्र पर दवा उपलब्ध हो जाएगी। प्रमाण के तौर पर कैल्शियम केटू-7 टेबलेट बाजार में 200 रुपये का पत्ता मिलता है, लेकिन जन औषधि केंद्र में इसकी कीमत सिर्फ 20 रुपये है। बुखार की दवा डोलो की 10 टेबलेट मेडिकल स्टोर पर 40 रुपये की हैं, लेकिन जन औषधि केंद्र में इसकी कीमत सिर्फ 15 रुपये है।

प्रधानमत्री जन औषधि केंद्र संचालक आदित्य सिंह का कहना है कि तीन-चार डाॅक्टर ही जन औषधि केंद्र की दवाएं लिखते हैं। उनके यहां दवाएं साल्ट लिखने पर उपलब्ध होती हैं। डाॅक्टर नाम से दवाएं लिखते हैं और उनके यहां से खरीदी गई दवाएं लौटा देते हैं। दोनों केंद्रों पर औसतन 15 से 16 हजार दवाएं प्रतिदिन बिक रही हैं। बताया कि बिक्री न होने के कारण कम मात्रा में दवाओं का स्टाॅक रखते हैं। ऐसे में तीन महीने में करीब ढाई हजार की दवाओं की समय सीमा समाप्त हुई है। ऐसी दवाएं नष्ट कराई गई हैं।

– आदित्य सिंह, जनऔषधि केंद्र संचालक।



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