फतेहपुर। पक्के आवास की उम्मीदों पर अफसरों के कामकाज का तरीका रोड़ा बन गया। मलाका गांव में सचिव से लेकर परियोजना अधिकारी तक ने 63 पात्रों को जिस जमीन पर आवास आवंटित किए, वह भूमि वन विभाग की निकली। इसकी जानकारी होते ही वन विभाग ने आपत्ति लगा दी। आवास बनते इससे पहले ही रोक लग गई। अब इन लाभार्थियों के लिए सरकारी जमीन की तलाश की जा रही है ताकि आवंटित आवासोंं को बनवाया जा सके भिटौरा विकास खंड के गांव मलाका में करीब 63 से अधिक परिवार निवासरत हैं। सभी परिवार 2011 व 2018 की आर्थिक जनगणना की सूची में शामिल हैं। इन सभी को प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण से जोड़ना है। ग्राम पंचायत सचिव ने मौके पर जाकर सभी परिवारों का भौतिक सत्यापन किया। उसमें जमीन का ब्योरा सहित आर्थिक रूप से कमजोर के पूरे दस्तावेजों की जांच की। सभी दस्तावेजों को ब्लाक कार्यालय में सौंपा। कार्यालय में अकाउंटेंट ने सभी दस्तावेजों की जांच पड़ताल की। ग्राम पंचायत अधिकारी ने सेक्टर अधिकारी से जांच कराके जिला परियोजना अधिकारी को पात्र की सूची सौंपी। यहां भी दस्तावेजों की जमीन हकीकत की जानकारी लिए बगैर राज्य शासन को भेज दिया गया।
शासन की ओर से पात्र मानते हुए मलाका के सभी 63 परिवारों को आवास बनाने की अनुमति दे दी गई। लेकिन ऐनवक्त पर वन विभाग ने आवास बनाने पर आपत्ति लगा दी। विभाग ने जमीन पर अपना मालिकाना हक बताया। ऐसे में आवास की किश्त कागजों पर ही अटक गई। पात्रता होने के बावजूद हितग्राहियों को उनका अधिकारी नहीं मिल सका। ये खामी सचिव से लेकर परियोजना अधिकारी ने नजरअंदाज कर दी, जो अब भारी पड़ रही है।
किसकी है क्या जिम्मेदारी, कहां हुई चूक
सचिव- ग्राम पंचायत सचिव की भूमिका सबसे अहम होती है। वह पहली कड़ी है। वह सूची में शामिल हितग्राही के आवास का भौतिक सत्यापन करता है। उसमें आर्थिक रूप से कमजोर होने के पूरे दस्तावेज चेक किए जाते हैं, जहां आवास का निर्माण करना है, उस जमीन का पूरा ब्योरा लिया जाता है। सचिव को वन विभाग की जमीन की जानकारी होने के बावजूद नजरअंदाज करके फाइल को आगे बढ़ा दिया।
ग्राम विकास अधिकारी- ग्राम विकास अधिकारी के पास फाइल पहुंचती है। वह सेक्टर अधिकारी से जांच कराते हैं। कोई संशय होने पर तीन सदस्यीय टीम बनाकर जांच भी करा सकते हैं। टीम में सचिव भी सदस्य होता है। अन्य कारणों में वह आला अफसरों से राय ले सकते हैं। इसके बावजूद जांच में कोताही बरती गई।
परियोजना अधिकारी- जिले में बैठे परियोजना अधिकारी का काम सभी दस्तावेजों की जांच पड़ताल करने के बाद ही शासन को भेजना होता है। उनकी संस्तुति के बाद शासन पात्रों के लिए आवास की मांग को पूरा करती है। लेकिन इस स्तर पर भी जमीन हकीकत जानने की कोशिश ही नहीं की गई।
पहले भी आ चुका है ऐसा मामला
मलाका में चार साल पहले भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था। 39 परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना में शामिल किया गया था। वन विभाग ने तब भी अपनी जमीन पर होने जा रहे निर्माण पर आपत्ति लगाई थी। इस पर प्रशासन की ओर से लाभार्थियों को आबादी की जमीन उपलब्ध कराई गई थी। आवंटन प्रक्रिया के तहत भूमि प्रबंधक समिति के अध्यक्ष प्रधान, सचिव और लेखपाल ने हितग्राहियों को जमीन आवंटित करने का प्रस्ताव एसडीएम को भेजा था। एसडीएम ने जरूरी दस्तावेजों और जमीन की उपलब्धता की जांच कर सभी 39 परिवारों में प्रत्येक को 800 वर्ग फीट जमीन का पट्टा दिया था। इसी तरह 63 परिवारों को भी जिला प्रशासन जमीन उपलब्ध कराकर आवास का निर्माण कराएगा।
मलाका के 63 परिवार पात्रता सूची में शामिल हैं। वन विभाग की जमीन होने पर कुछ दिनों पहले तहसीलदार के साथ मौके पर बातचीत की गई है। आसपास कुछ सरकारी जमीन भी है। लेखपाल जांचकर जमीन संबंधी जानकारी देंगे। उनको वहां आवास दिए जाएंगे।
– शेषमणि सिंह, परियोजना अधिकारी।
