बिंदकी। 52 क्रांतिकारियों की शहादत का गवाह बावन इमली का पेड़ अब भी अतीत के गौरव की कहानी बयां कर रहा है। अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता बयां करता शहीद स्थल बावनी इमली स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अब भी अमर है।

महान क्रांतिकारी ठाकुर जोधा सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ गोरिल्ला युद्ध की शुरुआत की थी। उन्होंने अवध एवं बुंदेलखंड के क्रांतिकारियों को एक सूत्र में बांधकर संगठित संघर्ष किया। जोधा सिंह और उनके साथियों ने 27 अक्तूबर 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा और एक अंग्रेज सिपाही को घेर कर मार डाला। गोरिल्ला कार्रवाई का खजुहा कस्बा प्रमुख स्थान था। चारों ओर आने-जाने की सुविधा होने से अक्सर यहीं क्रांति की अलख जगाने वाले वीर एकत्र होते थे। इसकी जानकारी मुखबिर ने कर्नल कैंपवेल को दी। उसके निर्देश पर कर्नल पावेल ने क्रांतिकारियों के दल पर हमला कर दिया, लेकिन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए कर्नल पावेल को मौत के घाट उतार दिया। इससे अंग्रेजी हुकूमत झल्ला उठी।

ठाकुर जोधा सिंह 28 अप्रैल 1858 को अर्गल के राजा गणपत सिंह से मिलकर अपने 51 साथियों के साथ लौट रहे थे, तभी कर्नल क्रिस्टाइल की घुड़सवार सेना ने उन्हें छल-बल से घोरहा गांव के पास बंदी बना लिया। जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी पश्चिम मुगल रोड स्थित इस इमली के पेड़ में 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश हुक्मरानों के खिलाफ छापामार युद्ध लड़ने वाले ठाकुर जोधा सिंह अटैया और उनके 51 साथियों को सामूहिक रूप से फांसी दे दी गई। इन्हीं शहीदों की याद में इस पेड़ को बावन इमली कहा जाने लगा।

बताया जाता है कि अंग्रेजों ने लोगों को आतंकित करने के लिए सभी शवों को पेड़ से उतारने से मना कर रखा था। चेतावनी दी थी कि यदि किसी ने शव उतारने की हिम्मत की, तो उसका भी यही अंजाम होगा। इससे इन सभी क्रांतिकारियों के शव एक महीने तक इसी पेड़ में ही लटके रहे। इस दौरान इनके केवल कंकाल बचे थे। अमर शहीद जोधा सिंह के साथी ठाकुर महाराज सिंह ने अपने क्रांतिकारियों के साथ तीन/चार जून, 1858 की रात को इनके कंकालों का पेड़ से उतारकर गंगा नदी किनारे स्थित शिवराजपुर घाट पर अंतिम संस्कार किया था।



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *