Those from whom support was needed they only left the market

वृद्धाश्रम में कैरम खेलते बुजुर्ग
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार

जिन बेटे-बेटियों को नाजों से पाला, कभी कोई तकलीफ नहीं होने दी, जिनसे आस थी कि वह बुढ़ापे की लाठी बनेंगे, लेकिन उन्होंने ही जिंदगी भर की जमापूंजी बांट घर से निकाल दिया। अपनों ने किनारा किया तो वृद्ध आश्रम में सहारा मिला और अब तो यही इनका परिवार है। 

 

समाज कल्याण विभाग की ओर से संचालित वृद्धाश्रम में ऐसे तमाम लोग हैं, जो कि अपने बच्चों के सपनों को साकार करने में पूरा जीवन दे चुके हैं, लेकिन जब वह कोई काम करने लायक नहीं रहे और उन्हें सहारे की जरूरत पड़ी तो उन्हें घर-परिवार से दूर कर दिया गया। वृद्धाश्रम इन लोगों के लिए आशियाना बन चुका है और इनकी निगाहें दरवाजे की ओर टिकी रहती हैं, कोई उन्हें देखने या लेने आएगा। इस वृद्धाश्रम में 30 महिला और 40 पुरुष हैं। सबकी कहानी एक जैसी ही है। यहां तक कि तमाम ऐसे वृद्ध हैं, जिनके परिवारी जन उनको भूल चुके हैं। जब इन वृद्धजनों से फादर्स डे पर बात की गई तो इनकी आंखें  बरस पड़ी और जुबां खामोश होगई। कुछ को आज भी अपने परिवारों की बदनामी की चिंता है और दर्द को सीने में दबा लिया। 

केस नंबर -1

वृद्ध हाकिम सिंह ने बताया कि वह पिछले दो साल से यहां रह रहे हैं। पेशे से चालक थे। दो संतानों में एक बेटी की शादी हो गई है, इस दौरान उन्हें लकवा हो गया और वह वाहन चलाने की स्थिति में नहीं रहे। धीरे – धीरे मेरी जमा पूंजी भी खत्म हो गई। बेटे को शराब की लत लग गई। वह मारपीट करने लगा। मेरे ही घर से मुझे बाहर निकाल दिया। दो साल में वह कभी मिलने तक नहीं आया, उसे देखने का बहुत मन होता है। 

केस नंबर-2

लतीफ ने बताया कि वह यहां करीब ढ़ाई साल से हैं। पेशे से मिस्त्री थे और मेहनत -मजदूरी कर तीन बेटे और एक बेटी को पालपोसकर बढ़ा किया। इस दौरान बीमारी ने जकड़ लिया। बीमारी के जकड़ लिया तो परिवार के लोगों ने साथ छोड़ दिया। बेटों और बेटी की शादी होने के बाद सभी अपने परिवारों की जिम्मेदारी उठाने में मशगूल हो गए। इसी बीच पत्नी का भी देहांत हो गया। बेटों ने घर का हिस्सा बांटने के लिए घर बिकवा दिया। इसके बाद इस वृद्धाश्रम की शरण ले ली। अब इन्हें यह दुख है कि जिन तीनों बेटों को बड़ा किया, वो बेटे आज वृद्धाश्रम में देखने तक नहीं आते हैं।

 



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