झांसी। बुंदेलखंड में बंदूकें हमेशा से शान-शौकत का प्रतीक रही हैं। कर्ज लेकर भी असलहे खरीदने का यहां चलन रहा है लेकिन, अब तमाम वजहों से इनका क्रेज घटने लगा है। हालात यह है कि बुंदेलखंड में न सिर्फ बंदूक की दुकानें बंद होती जा रहीं बल्कि जो असलहे दुकानों में जमा हैं, उनको लेने भी सालों से नहीं आ रहे। झांसी मंडल में ही 2031 असलहे जमा हैं, जिनको वर्षों बीत जाने के बाद भी लोग लेने नहीं पहुंचे। अब ये असलहे गन हाउस संचालकों के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं।

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शस्त्र विक्रेताओं के मुताबिक हाल के वर्षों में पुलिस ने हर्ष फायरिंग को लेकर काफी सख्ती कर दी है। शादी समारोह के दौरान फायरिंग करने वालों पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। इन वजहों से असलहा के शौकीनों में कमी आई है। घरों में रखने के बजाय लोग दुकानों में असलहे रखवाना पसंद करने लगे। वरासत के मामले निपटाने में भी काफी सख्ती की जा रही है। इस वजह से भी दुकानों में बंदूकों के ढेर लग रहे हैं। लाइसेंस धारकों की मृत्यु के बाद वरासत बनवाने की प्रक्रिया बेहद जटिल हो गई है। इसी तरह वरासत मामलों में असलहा बदलने की भी इजाजत नहीं है। मसलन, अगर पिता के पास रिवाल्वर थी और उनकी मृत्यु के बाद वरासान पिस्टल लेना चाहे तो इसकी इजाजत नहीं मिलती। वरासत के जटिल होने से जो बंदूकें दुकानों में जमा हैं, वह वहीं पड़ी हैं।

झांसी शस्त्र विक्रेता संघ के पदाधिकारी दिलीप गुप्ता का कहना है कि बुंदेलखंड की तकरीबन सभी बंदूक की दुकानों में सालों से ऐसे असलहे पड़े हैं। वरासत दर्ज होने में परेशानी के चलते लोग अब अपने असलहे लेने नहीं आ रहे। करीब तीस-तीस साल से असलहे दुकान में जमा हैं। इनमें ब्रिटिश जमाने तक के असलहे शामिल हैं।



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