Former DGP said: SP gave protection to Mukhtar, saved him even in POTA case, also accused Congress-BSP

पूर्व डीजीपी बृजलाल और मुख्तार अंसारी।
– फोटो : अमर उजाला

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राज्यसभा सांसद एवं पूर्व डीजीपी बृजलाल ने कहा कि माफिया मुख्तार अंसारी को समाजवादी पार्टी की सरकार का खुला संरक्षण प्राप्त था। पोटा के मुकदमे में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की सरकार ने उसके खिलाफ पोटा का मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी थी। उन्होंने कांग्रेस और बसपा पर भी हमला बाेलते हुए कहा कि पंजाब की कांग्रेस सरकार ने मुख्तार को बचाने का भरकस प्रयास किया। वहीं बसपा के जिस दलित प्रत्याशी की हत्या मुख्तार ने कराई थी, उसे बाद में बसपा ने मऊ सीट से विधानसभा भेजा था। उन्होंने कहा कि मुख्तार की मौत से पूर्वी उप्र में अपराध और राजनीति की कॉकटेल का भी खात्मा हुआ है।

सांसद बृजलाल के मुताबिक कृष्णानंद राय वर्ष 2002 में गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट से भाजपा विधायक बने थे, जिसे अफजाल अंसारी और मुख्तार अपनी बपौती मानते थे। वह कृष्णानंद राय की हत्या करने की साजिश रचने लगे। मुख्तार के गनर रहे मुन्नर यादव ने जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय रायफल्स में तैनात अपने भांजे बाबूलाल से लाइट मशीन गन का इंतजाम करने को कहा। बाबूलाल सेना की लाइट मशीन गन और कारतूस लेकर भाग आया, लेकिन वाराणसी एसटीएफ के डिप्टी एसपी शैलेन्द्र कुमार सिंह ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया और इस केस में मुख्तार पर भी पोटा लगाया। 

उस दौरान मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे, जो मुख्तार को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। डिप्टी एसपी को इतना प्रताड़ित किया गया कि उसने इस्तीफा दे दिया। उसे वाराणसी कचहरी में हमला करने के फर्जी आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इस मुकदमे में मुन्नर और बाबूलाल को 10-10 साल की सजा हुई, लेकिन मुख्तार के विरुद्ध पोटा में मुकदमा चलाने का अनुमति सपा सरकार ने नहीं दी। इसी तरह कृष्णानंद राय की हत्या का मुकदमा भी छूट गया कई गवाहों की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी, जबकि अन्य ने गवाही नहीं दी। सपा सरकार में मुख्तार को खुला संरक्षण मिलता रहा।

मुस्लिम वोट बैंक का ध्रुवीकरण कराना चाहती थी कांग्रेस

उन्होंने कहा कि मुख्तार को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर पंजाब जेल में रखा गया, ताकि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में किया जा सके। इसके जरिए कांग्रेस पूर्वी उप्र के मुस्लिमों को संदेश देना चाहती थी कि वह मुख्तार को बचा रही है। मुख्तार पर पंजाब में दर्ज वसूली के झूठे मुकदमे में पुलिस ने 90 दिन तक चार्जशीट नहीं लगाई। वहीं मुख्तार ने भी कभी जमानत नहीं मांगी। यूपी में चल रहे मुकदमों में प्रोडक्शन वारंट लेकर उसे बांदा जेल लाने की कोशिश हुई, लेकिन हर बार पंजाब सरकार टालमटोल करती रही। पंजाब के जेल मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने 13 मार्च 2021 को लखनऊ आकर मुख्तार के परिवार से मुलाकात भी की थी। तत्पश्चात यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मुख्तार को 27 महीने बाद वापस बांदा जेल लाया जा सका। पंजाब सरकार ने मुख्तार को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में नामी वकील खड़े किये, जिन पर करीब 60 लाख खर्च हुए।

टिकट पाने के लिए बसपा प्रत्याशी की हत्या की

बृजलाल ने कहा कि मुख्तार का राजनीतिक सफर बसपा के दलित प्रत्याशी की हत्या से शुरु हुआ था। वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने गठबंधन किया था। मुख्तार गाजीपुर सदर से बसपा का टिकट चाहता था, लेकिन कांशीराम ने अपने सहयोगी विश्वनाथ राम मुनीब को टिकट दे दिया। गाजीपुर में 20 नवंबर 1993 को मतदान से पहले रात को जब विश्वनाथ राम मुनीब बसपा कार्यालय से निकले, तो उनकी हत्या मुख्तार ने अपने गुर्गों से करवा दी। तत्पश्चात वर्ष 1994 में उपचुनाव हुआ, जिसमें मुख्तार कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से लड़ा, लेकिन बसपा प्रत्याशी राजबहादुर से हार गया। बाद में मुख्तार मऊ विधानसभा से बसपा के टिकट पर पहली बार विधायक बना।



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