झांसी। देश की आजादी में झांसी की भूमिका अहम रही है। सन 1857 में स्वराज्य के लिए रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में क्रांति का आगाज झांसी से हुआ था। 1947 तक आजादी के लिए हुए प्रत्येक आंदोलन में झांसी के क्रांतिकारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्वराज्य के मंत्र गुनगुनाते रहे। यहां महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलनों को जमकर समर्थन मिला तो सशस्त्र क्रांति आंदोलन के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को भरपूर साथ और स्नेह मिला।

हिंदुस्तान में आजादी की आवाज झांसी से वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ने बुलंद की थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गईं। लेकिन वह आने वाली पीढ़ी को स्वराज्य का मंत्र विरासत में दे गई, जिसे झांसी के जन-जन ने अपने हृदय में बसाकर रख लिया। पहली बार सन 1920 में झांसी आए महात्मा गांधी का झांसीवासियों ने भव्य स्वागत किया था। नगर से लेकर गांव-गांव तक विदेशी वस्त्रों की होली जली थी। खिलाफत आंदोलन, नमक सत्याग्रह, झंडा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन में नगरवासियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। साहित्यकार एवं इतिहासकार जानकी शरण वर्मा की पुस्तक अमर बलिदानी के अनुसार गांधीवादी आंदोलनों में रघुनाथ विनायक धुलेकर, आत्माराम गोविंद खेर, लक्ष्मणराव कदम, सीताराम भागवत, कुंजबिहारी लाल शिवानी, रामसहाय शर्मा, कृष्णचंद्र पेगोरिया, कालीचरण निगम, अयोध्या प्रसाद, रामेश्वर प्रसाद शर्मा, बृजभूषण त्रिपाठी, रामलाल पांडेय, अब्दुल रसीद, हरदास वर्मा, बाबूलाल चौधरी, शंकर पांडेय, डा. गोविंद प्रसाद हिंगवासिया, कृष्ण गणेश खानवलकर आदि की अहम भूमिका रही। सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन में पंडित परमानंद, डॉ. भगवान दास माहौर, सदाशिव राव मलकापुरकर, रामसेवक रावत, लक्ष्मीकांत शुक्ल, शालिगराम शुक्ल, गजानन सदाशिव, विश्वनाथ गंगाधर वैशम्पायन, कृष्ण गोपाल शर्मा, नित्यानंद, मथुरा प्रसाद गंधी, शंभूनाथ, रतन, बाबूराम श्रीवास्तव रहे। मास्टर रूद्र नारायण सिंह चंद्रशेखर आजाद के प्रमुख सहयोगी थे।



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