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Good news: Get thalassemia test done in the district hospital

जिला अस्पताल में थैलेसीमिया जांच की मशीन दिखाते लैब टेक्नीशियन। 
– फोटो : संवाद

उरई। जिला अस्पताल में अब थैलेसीमिया रोग की जांच शुरू हो गई है। अब मरीजों को प्राइवेट पैथोलॉजी से महंगी जांच नहीं करानी पड़ेगी। निजी लैब में थैलेसीमिया जांच कम से कम 1200 रुपये में होती है। जबकि जिला अस्पताल में मुफ्त होगी। जिले में करीब एक हजार मरीज हैं। अब एक दिन में करीब बीस से तीस मरीजों की जांच प्रतिदिन अस्पताल में हो सकेगी।

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सीएमएस डॉ. आनंद कुमार सिंह ने पैथोलोॉजिस्ट डॉ. अमित गुप्ता को इसका नोडल अधिकारी मनोनीत किया है। बताया कि जिला अस्पताल में थैलेसीमिया की जांच की सुविधा शुरू हो गई है। मशीन के साथ किट भी मंगा ली गई है। इससे अब मरीजों को प्राइवेट पैथोलॉजी के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। इस मशीन से खून में कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, पीएच लेवल की सटीक जांच हो सकेगी। बीमारी पता होते ही उसका तत्काल उपचार शुरू हो सकेगा।

उन्होंने बताया कि यह बीमारी अधिकतर बच्चों में होती है। यह खून से जुड़ी बीमारी है। इसके लिए जिला अस्पताल में तैनात सभी बाल रोग विशेषज्ञों को निर्देशित कर दिया गया है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. संजीव अग्रवाल को विशेष रूप से इसके लिए लगाया गया है।

पैथोलॉजिस्ट डॉ. अमित गुप्ता ने बताया कि सीबीसी (संपूर्ण रक्तकण गणना) से रक्त की कमी का तो पता लगाया जा सकता है लेकिन हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस जांच से असामान्य म्यूटेशन एनालिसिस टेस्ट (एएमटी) से अल्फा थैलेसीमिया के बारे में जाना जाता है। अब इसकी किट आ गई है। इससे मरीजों की जांच हो सकेगी।

डॉ.संजीव ने बताया कि थैलेसीमिया एक रक्त संबंधित वंशानुगत बीमारी है। यह एक ऐसा रोग है, जिसकी वजह से मरीज को कई अन्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। यह व्यक्ति के शरीर की सामान्य हीमोग्लोबिन उत्पादन करने की क्षमता को प्रभावित करता है। थैलेसीमिया होने पर मरीज का शरीर कम स्वस्थ हीमोग्लोबिन प्रोटीन का उत्पादन करता है। साथ ही उसकी अस्थि मज्जा (बोन मैरो) कम स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करती है। ऐसी स्थिति एनीमिया का रूप ले लेती है।

थैलेसीमिया मरीज को यह हो सकती है दिक्कत

चक्कर आना, पीली त्वचा, बुखार आना, भूख न लगना, सामान्य से ज्यादा थकान, सांस लेने में कठिनाई, ठंड महसूस होना आदि है।

लक्षण

थकान और कमजोरी। एनीमिया रहना। सामान्य से कम विकास। चेहरे की हड्डी की विकृति। लिवर का बढ़ना। पीलिया रहना और मूत्र का रंग गहरा हो जाता है।



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