
गोरखपुर मेयर पद पर भाजपा प्रत्याशी डॉ मंगलेश श्रीवास्तव जीत गए हैं।
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गोरखपुर नगर निगम मेयर पद भाजपा लगातार चौथी बार जीत गई है। मुख्यमंत्री का शहर होने चलते सबकी निगाहें यहां के मेयर पद पर थीं। हालांकि, जीत के दावे सभी दल अपने-अपने समीकरण से कर रहे थे।
बता दें कि यहां भाजपा प्रत्याशी डॉ मंगलेश श्रीवास्तव ने सपा प्रत्याशी काजल निषाद को 60876 मतों से हरा दिया हैं। भाजपा को 180629 और सपा को 119753 मत प्राप्त हुए हैं।
नगर निगम के गठन के बाद वर्ष 1995 में पहली बार भाजपा से राजेंद्र शर्मा मेयर बने। तब सीट ओबीसी के लिए आरक्षित थी। इसके बाद वर्ष 2000 में इतिहास बना। ओबीसी महिला के लिए आरक्षित सीट पर पहली बार किन्नर अमरनाथ यादव उर्फ आशा देवी मेयर चुनी गईं। इस चुनाव में मतदाताओं ने सभी राजनीतिक दलों को नकार दिया था और किन्नर के सिर पर ताज सजाया।
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हालांकि, इसके बाद के चुनाव में फिर भाजपा का दमखम देखने को मिला। 2006 में ओबीसी के लिए आरक्षित सीट पर डॉ अंजू चौधरी मेयर बनीं। वर्ष 2012 में सामान्य महिला के लिए आरक्षित सीट पर डॉ सत्या पांडेय और इसके बाद भाजपा की जीत की हैट्रिक लगाते हुए 2017 में सीताराम जायसवाल मेयर चुने गए।
इस बार पहला मौका है जब गोरखपुर के मेयर की सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हुई थी। ऐसे में हर जाति वर्ग के लोगों को ताल ठोकने का मौका मिला। भाजपा ने डॉ. मंगलेश श्रीवास्तव पर दांव लगाकर लोकसभा चुनाव के पहले कायस्थ मतदाताओं को साधने की कोशिश की, तो वहीं सपा ने इस बार निषाद बिरादारी को साधने के लिए भोजपुरी अभिनेत्री काजल निषाद को प्रत्याशी बना दिया।
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इसी प्रकार कांग्रेस ने नवीन सिन्हा पर दांव लगाकर कायस्थ बिरादरी में सेंधमारी की कोशिश की। जबकि, व्यापारी वर्ग को जोड़ने के लिए बसपा ने नवल किशोरी नथानी को उतार कर संदेश दिया। हालांकि, शनिवार को परिणाम आने के बाद सबसे समीकरण धरे के धरे रह गए।