इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा पति से अलग रहकर अच्छा कमा रही पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह की अदालत ने पत्नी को गुजारा भत्ता अदा करने के परिवार न्यायालय गौतमबुद्ध नगर का आदेश रद्द कर दिया।

पति ने पुनरीक्षण याचिका में दलील दी कि परिवार न्यायालय की ओर से पत्नी को पांच हजार रुपये प्रति माह अदा करने का आदेश उसकी गलत बयानी के आधार पर दिया है। पत्नी ने अपनी अर्जी में खुद को बेरोजगार होने का दावा किया है, जबकि वह उच्च शिक्षित कामकाजी महिला है। अपनी नौकरी से वह 36,000 रुपये प्रतिमाह कमाती है। कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के दौरान पाया कि पत्नी ने ट्रायल कोर्ट में प्रति परीक्षा में 36000 रुपये की आमदनी स्वीकार की है। पत्नी पर कोई और ज़िम्मेदारी भी नहीं है।

इसके विपरीत, पति पर बूढ़े माता-पिता के पालन-पोषण समेत अन्य सामाजिक जिम्मेदारियां हैं। कोर्ट ने कहा कि कानून वही पत्नी गुजारा-भत्ता पाने की हकदार हो सकती है, जिसके पास जीवनयापन का साधन न हो। मौजूदा मामले में पत्नी ने अदालत में खुद को बेरोजगार होने का दावा किया, जो न्यायिक प्रक्रिया को दूषित करने का प्रयास है। लिहाजा, दागी हाथों से अदालत आने वाली महिला राहत की हकदार नहीं है। 



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