इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेल दुर्घटना में माता-पिता को खो चुके नाबालिग को राज्य सरकार की ओर से मुआवजे का भुगतान न होने पर नाराजगी जताई है। पूछा है कि केंद्र सरकार ने जिस दस्तावेज के आधार पर भुगतान कर दिया तो वही राज्य के लिए कैसे अपर्याप्त हो सकता है। कोर्ट ने कहा, अधिकारी नीति का मजाक न बनाएं। यह तल्ख टिप्पणी न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी व न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने जौनपुर निवासी नाबालिग की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की।

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अधिवक्ता ने कोर्ट में दलील दी कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने हादसे में पीड़ितों के आश्रितों के लिए पांच लाख रुपये की अनुग्रह राशि की घोषणा की थी। केंद्र ने भुगतान कर दिया पर राज्य सरकार ने उसी दस्तावेज में कागज अधूरे बताकर भुगतान रोक दिया। राज्य सरकार की ओर से पेश शासकीय अधिवक्ता ने कोर्ट में दलील दी कि दुर्घटना में नाबालिग के माता-पिता की मृत्यु का कोई सबूत नहीं था। इसलिए भुगतान नहीं किया जा सका। कोर्ट ने कहा कि जब केंद्र ने भुगतान कर दिया तो राज्य सरकार को भी उन्हीं दस्तावेज को आधार मानना चाहिए था।

कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता को निर्देश दिया कि जवाबी हलफनामे की एक कॉपी प्रतिवादी के वकील को दें। साथ ही कोर्ट ने डीएम को आदेश दिया कि केंद्र सरकार के हलफनामे के आधार पर मामले में जरूरी कार्रवाई करें। अनुग्रह राशि का भुगतान कर छह जनवरी को अनुपालन हलफनामा दाखिल करें। ऐसा नहीं होता है तो डीएम को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होना पड़ेगा।



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