इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िताओं के गर्भपात मामलों में विभिन्न स्तरों पर होने वाली देरी को गंभीरता से लेते हुए स्वतः संज्ञान (सुओ मोटो) जनहित याचिका दर्ज की है। यह कार्यवाही 23 सितंबर 2025 से शुरू हुई, जिसमें कोर्ट ने समय पर चिकित्सकीय हस्तक्षेप में आ रही बाधाओं और प्रशासनिक लापरवाही पर चिंता जताई।

यह मामला संबंधितों को संवेदनशील बनाने के लिए दिशानिर्देशों का पुन: निर्धारण शीर्षक से दर्ज किया गया है। इसकी सुनवाई न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अरुण कुमार की खंडपीठ कर रही है। कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म पीड़िताओं के गर्भपात से जुड़े मामलों में प्रक्रियात्मक विलंब से समय पर चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाती। इससे पीड़िताओं को गंभीर मानसिक और शारीरिक कष्ट उठाने पड़ते हैं।

कोर्ट ने माना कि इस संवेदनशील विषय पर सभी संबंधित अधिकारियों को संवेदनशील बनाने और स्पष्ट दिशानिर्देश तय करने की आवश्यकता है। मामले में कोर्ट की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता महिमा मौर्य को न्याय मित्र नियुक्त किया गया है। इससे पहले 27 नवंबर को सुनवाई के दौरान महिमा और प्रदेश सरकार की ओर से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता राजीव गुप्ता ने अदालत के समक्ष कई महत्वपूर्ण सुझाव रखे, जिनका उद्देश्य प्रक्रिया को सरल, संवेदनशील और समयबद्ध बनाना था। इसके बाद मामले की सुनवाई 15 दिसंबर 2025 को हुई, जिसमें कोर्ट ने प्रस्तुत सुझावों पर विचार करते हुए आगे की सुनवाई की तिथि तय की। अब इस मामले में सुनवाई 13 जनवरी को होगी।



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