इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से हत्या के एक मामले में आठ आरोपियों की रिहाई को बरकरार रखते हुए मृतक की पत्नी मेवाती देवी की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि मुख्य चश्मदीद पत्नी और बेटे की गवाही मेडिकल साक्ष्य से मेल नहीं खाती है। दोनों का बयान था कि बोलेरो से कुचला गया जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कुचलने जैसी चोट व हाथ-पैर की एक भी हड्डी टूटी नहीं मिली। इसलिए ट्रायल कोर्ट की ओर से दिया गया संदेह का लाभ सही है। यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा व न्यायमूर्ति डॉ. अजय कुमार द्वितीय की खंडपीठ ने दिया।

आजमगढ़ के थाना रौनापार में मेवाती देवी ने सुभाष, रामकरण, रामबदन, हीरा, विशन व अन्य सहित आठ लोगों पर मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप लगाया था कि उनके पति 2 अगस्त 2011 की दोपहर करीब 12 बजे दूध बेचकर लौट रहे थे तभी भूमि विवाद में घात लगाकर बैठे आरोपियों ने बोलेरो वाहन से उन्हें टक्कर मार दी। इसके बाद पीछा कर पकड़ लिया और सड़क पर गिराकर उनके ऊपर बोलेरो चढ़ा दी। इससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई। पत्नी मेवाती देवी और बेटे ने यह सब अपनी आंखों से देखने का दावा किया था। सत्र न्यायाधीश ने 30 अगस्त 2025 को अपना निर्णय सुनाते हुए सभी आठ आरोपियों को बरी कर दिया था। इसके खिलाफ मेवाती देवी ने हाईकोर्ट में अपील दायर की।

हाईकोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद पाया, आरोप यह था कि बोलेरो से कई बार कुचलने के कारण मृतक के हाथ-पैर टूट गए लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हड्डी टूटने का उल्लेख नहीं मिला। गवाहों के बयान साक्ष्यों के विपरीत पाए गए। अदालत ने कहा कि यदि वे वास्तव में मौके पर मौजूद होते तो उनके बयान इतने विरोधाभासी नहीं होते। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी।



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