इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना का लाभ देते वक्त यह देखना जरूरी है कि मृतक की मुख्य आजीविका कृषि थी या नहीं। केवल कृषि भूमि उसके नाम पर राजस्व अभिलेख में दर्ज थी, यह महत्वपूर्ण नहीं है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अजित कुमार और न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने कन्नौज निवासी एक महिला की याचिका पर की।

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याचिकाकर्ता के किसान पति की 29 अगस्त 2020 को सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। उनके निधन के बाद अब परिवार में वृद्ध पिता, पत्नी और तीन नाबालिग बच्चे हैं। कृषि भूमि मृतक के दादा के नाम पर दर्ज थी। उसी पर किसान खेती कर परिवार का पालन-पोषण करता था। पति की मृत्यु के बाद महिला ने मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना के तहत मुआवजे के लिए आवेदन किया। इस पर जिला प्रशासन ने यह कहते हुए दावा खारिज कर दिया कि मृतक की आजीविका कृषि नहीं, बल्कि वह एक जनरल स्टोर की दुकान पर काम करता था। उसके नाम जमीन दर्ज नहीं है।

इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि 28 फरवरी 2020 के शासनादेश से स्पष्ट है कि योजना का उद्देश्य दुर्घटना में मृत किसानों के आश्रितों को आर्थिक सहायता देना है। योजना में यह कहीं अनिवार्य नहीं किया गया है कि भूमि मृतक किसान के नाम पर ही दर्ज हो। ग्रामीण परिवेश में यह सामान्य बात है कि कृषि भूमि परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य के नाम पर दर्ज रहती है। खेती का कार्य संयुक्त रूप से अन्य सदस्य करते हैं। ऐसे में केवल भूमि के नाम के आधार पर किसी को योजना के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता।



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