इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित कोटे के तहत संविदा पर दी जाने वाली नियुक्तियों पर कड़ी आपत्ति जताई है। कहा है कि अधिकारियों को कानून और नियमों के अनुसार ही कार्य करना चाहिए। विभाग की लापरवाही का खामियाजा किसी गरीब या कम पढ़े-लिखे आवेदक को नहीं भुगतना चाहिए। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) को दो सप्ताह में नियमानुसार कार्रवाई करने का निर्देश देते हुए सात जनवरी की तिथि नियत की है।

यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकल पीठ ने सुमित कुमार सिंह की याचिका पर दिया है। मुरादाबाद निवासी याची के पिता यूपीएसआरटीसी में कंडक्टर थे। उनकी मृत्यु 30 जुलाई 2000 को सेवाकाल के दौरान हो गई थी। उस समय याची नाबालिग था। बालिग होने पर उसने नियुक्ति के लिए आवेदन किया। इस पर उसे 14 सितंबर 2007 को उसे संविदा के आधार पर कंडक्टर के पद पर नियुक्त कर दिया गया। इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

कोर्ट ने कहा, नियमानुसार मृतक सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती संविदा पर नहीं की जा सकती। अधिकारियों को कानून की जानकारी न रखने वाले लोगों के हितों की रक्षा करनी चाहिए न कि नियमों के विरुद्ध कार्य करना चाहिए। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण अदालतों में मुकदमों की बाढ़ आ रही है। इससे न्याय व्यवस्था पर बोझ बढ़ता है। 



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