इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में दुकानों के कब्जे को लेकर चल रहे 25 साल से विवाद को समाप्त कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि संस्था एक सार्वजनिक धार्मिक एवं धर्मार्थ ट्रस्ट है। उसकी संपत्तियां यूपी किराया कानून के दायरे से बाहर हैं। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने दुकानें खाली करने का आदेश देते हुए दुकानदारों की याचिकाएं खारिज कर दीं। यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने अशोक राघव, पदमा राघव व तीन अन्य की याचिका पर दिया है।
1944 में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मस्थान के जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ था। 1951 में जुगल किशोर बिड़ला ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की। 1958 में इसके प्रबंधन के लिए श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान नामक सोसाइटी पंजीकृत कराई। संस्थान ने परिसर के अंदर कुछ दुकानें बनवाकर उन्हें लाइसेंस के आधार पर 11 महीने के लिए अशोक राघव, पद्मा राघव और हरिश राघव को किराये पर दी थी। संस्थान ने 2000-2002 के दौरान इनके खिलाफ बेदखली के मुकदमे दायर किए। ट्रायल कोर्ट ने 30 अगस्त 2025 के आदेश से संस्थान के पक्ष में फैसला सुनाया। किरायेदारों ने इसको हाईकोर्ट में चुनौती दी।
याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि संस्थान एक सार्वजनिक धार्मिक या धर्मार्थ ट्रस्ट नहीं है। इसलिए उत्तर प्रदेश अर्बन बिल्डिंग एक्ट-1972 लागू होना चाहिए, जो किरायेदारों को ज्यादा सुरक्षा देता है। उन्होंने यह भी कहा कि संस्थान के सचिव कपिल शर्मा के पास उनके खिलाफ मुकदमा दायर करने का अधिकार नहीं था। वहीं, प्रतिवादी संस्थान अधिवक्ता हरेराम त्रिपाठी ने दलील दी कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थान पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में है।
दुकानों पर अनधिकृत कब्जे के चलते वहां पर दिव्यांगों व श्रद्धालुओं की सुविधाओं के लिए निर्माण कार्य नहीं हो पा रहा है। कोर्ट ने संस्थान को सार्वजनिक धार्मिक और धर्मार्थ संस्थान माना। कहा, संस्थान के संविधान के मुताबिक सचिव और संयुक्त सचिव को संस्थान की तरफ से मुकदमे चलाने का पूरा अधिकार है। कपिल शर्मा के अधिकार पर संस्थान के किसी भी ट्रस्टी या सदस्य ने आपत्ति नहीं की। इसलिए किरायेदार इस आधार पर मुकदमे को चुनौती नहीं दे सकते।
