High Court Advocate can argue only on the facts written in the application

अदालत का आदेश
– फोटो : istock

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत अर्जी में जो तथ्य लिखा है, अधिवक्ता उसी पर बहस कर सकता है। यदि तथ्यों से अपराध बनता है तो अग्रिम जमानत देना पीड़ित के हित के खिलाफ होगा। अग्रिम जमानत विशेष उपबंध है, इसमें झूठा फंसाने की आशंका पर कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर अग्रिम जमानत देती है। यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने झांसी के प्रेमनगर बैंक के हेड कैशियर मनीष कुमार की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी।

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झांसी निवासी सुनील कुमार तिवारी अपने सुरक्षा गार्ड योगेंद्र सिंह के साथ बैंक गए थे और लगभग 39 लाख रुपये हेड कैशियर मनीष कुमार को जमा करने को दिया और रसीद लिए बगैर चले गए। दूसरे दिन रसीद लेने आदमी भेजा तो 11 लाख रुपये की ही जमा रसीद दी गई। इस पर उन्होंने संबंधित थाने में अमानत में खयानत का मुकदमा दर्ज कराया।

हेड कैशियर मनीष कुमार ने अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट से गुहार लगाई। याची के वकील ने दलील दी कि उसे झूठा फंसाया गया है। रुपये पूरे दिए थे, किंतु थोड़ी देर बाद गार्ड आया और 28 लाख रुपये ले गया, शेष राशि ही जमा की गई। यह सीसीटीवी फुटेज में दर्ज है।

कोर्ट ने अपने को निर्दोष साबित करने के लिए याची से दस्तावेज मांगे तो वह नहीं दे सका। कोर्ट ने कहा कि याची अधिवक्ता ने उन तथ्यों पर बहस की जो अग्रिम जमानत अर्जी में लिखे ही नहीं गए थे। इसपर कोर्ट ने अग्रिम जमानत देने से इन्कार कर दिया।



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