इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले 16 से 18 साल उम्र की पत्नी संग शारीरिक संबंध आईपीसी के तहत दुष्कर्म नहीं था। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने 2005 की घटना में विवाह के बाद बने शारीरिक संबंध को अपराध मानते हुए ट्रायल कोर्ट की ओर सुनाई गई सजा और दोषसिद्धि को रद्द कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति अनिल कुमार की खंडपीठ ने इस्लाम उर्फ पलटू की अपील पर दिया। कानपुर नगर निवासी अपीलकर्ता पर पीड़िता के पिता ने 2005 में दुष्कर्म, अपहरण सहित कई आरोपों में मुकदमा दर्ज कराया था।
आरोप लगाया था कि उसकी 16 वर्षीय बेटी को बहला-फुसला कर भगा ले गया और दुष्कर्म किया। वहीं, आरोपी का कहना था कि दोनों मुस्लिम हैं और उन्होंने सहमति से पीड़िता से निकाह किया था। ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता को नाबालिग मानते हुए उसकी सहमति को महत्वहीन मानते हुए दुष्कर्म, अपहरण, विवाह के लिए मजबूर करने के इरादे से अपहरण का दोषी करार देते हुए सजा सुनाई। इस फैसले को अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।