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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उच्च न्यायालय में सरकारी वकीलों की तैनाती प्रक्रिया को चुनौती मामले में राज्य सरकार को चार सितंबर तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। मामले की सुनवाई के समय कोर्ट के पहले के आदेश के तहत राज्य सरकार का हलफनामा दाखिल नहीं हो सका। इस पर कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार, हलफनामे को अंतिम रूप देकर अगली सुनवाई की तिथि चार सितंबर तक दाखिल करे।

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न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने यह आदेश महेंद्र सिंह पवार की वर्ष 2017 की जनहित याचिका पर दिया। इसमें हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से पैरवी को तैनात किए गए सरकारी वकीलों की आबद्धता प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए पारदर्शी व साफ-सुथरी प्रक्रिया अपनाए जाने का आग्रह किया गया है।

याचिका में यह अहम मुद्दा भी उठाया गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ पीठ में सिविल और क्रिमिनल साइड में कितने सरकारी वकीलों की तैनाती की जरूरत है, यह किस आधार पर तय किया जाता है? सुनवाई के समय राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए।

बीते बृहस्पतिवार को सुनवाई के समय राज्य सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह ने कोर्ट को बताया कि कोर्ट के पहले आदेश के तहत जवाबी हलफनामा तैयार किया गया है लेकिन अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया। इस पर कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार, हलफनामे को अंतिम रूप देकर अगली सुनवाई की तिथि 4 सितंबर तक दाखिल करें।

पहले कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि उच्च न्यायालय इलाहाबाद व लखनऊ पीठ में कितने सरकारी वकीलों की जरूरत है। इस मामले में पहले के आदेश पर सरकार की ओर से दाखिल जवाब से कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ था। कोर्ट ने सरकार को बेहतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने आदेश दिया था।



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