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Lucknow High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि जीवनसाथी के अंदर मानसिक रुप से विकार है तो उसे इस आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता।


लखनऊ हाईकोर्ट का फैसला।
– फोटो : अमर उजाला।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पारिवारिक विवाद के मामले में दिए फैसले में कहा कि जीवनसाथी को महज मनोविकार होना, तलाक लेने के लिए पर्याप्त नहीं है। सभी तरह की मानसिक विकारों को तलाक के आधार के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती। हालांकि कोर्ट ने इस मामले में पाया कि पति-पत्नी एक दशक से भी अधिक समय से अलग रह रहे हैं। इस पर कोर्ट ने विवाह को भंग कर दिया और पति को तलाक मंजूर कर दी।
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने यह फैसला पति की तलाक मामले में दाखिल अपील को मंजूर करके दिया। पति ने अपील में प्रतापगढ़ की पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पत्नी से तलाक लेने के दावे को खारिज कर दिया गया था। पति ने दावे में इस आधार पर तलाक मंजूर करने का आग्रह किया था कि उसकी पत्नी सिजोफ्रेनिया (मानसिक बीमारी) से ग्रस्त थी। पति ने कहा था विवाह से पहले उसे पत्नी की मानसिक बीमारी की जानकारी नहीं दी गई। कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13(1) की उपधारा तीन के तहत कोई जीवनसाथी इस स्थिति में विवाह भंग करने का आवेदन कर सकता है जब दूसरा विकृत चित्त या मनोविकार ग्रस्त हो।
कोर्ट ने कहा कि जीवनसाथी को महज सिजोफ्रेनिया होना तलाक मांगने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है। क्योंकि मानसिक बीमारी के कई स्तर हो सकते हैं। हालांकि कोर्ट ने पाया कि पति पत्नी एक दशक से भी अधिक अलग रह रहे हैं। कोर्ट के कई बार नोटिस जारी करने के बावजूद पत्नी प्रतिवाद करने को पेश नहीं हुई। कोर्ट ने कहा कि पत्नी का प्रतिवाद करने के लिए पेश न होना, उसकी पति के साथ न रहने और परित्याग की इच्छा को दर्शाता है। इस पर कोर्ट ने विवाह को भंग कर दिया और पति को तलाक की डिक्री मंजूर कर दी।