
चंद्र किशोर राठौर उर्फ चुन्ना भाई।
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किसी का कोई मर जाए हमारे घर में मातम है, गरज बारह महीने तीस दिन को मुहर्रम है। रिंद लखनवी का ये शेर हमारे लखनऊ पर बिल्कुल सटीक बैठता है। राजधानी में मुसलमानों के अलावा कई हिंदू अजादार भी इमाम हुसैन की शहादत का गम मनाते हैं। वे मजलिसों में शामिल होते हैं और मातम कर इमाम को पुरसा देते हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारे की मिसाल बने ऐसे ही हिंदू अजादारों से बात की मोहम्मद इरफान ने।
मातम कर मनाते हैं इमाम की शहादत का गम
चंद्र किशोर राठौर उर्फ चुन्ना भाई ने मंसूर नगर में अपने तीन कमरों के मकान के एक हिस्से में करीब 35 साल पहले इमामबाड़ा सजाया था। मां तारा देवी नाराज हुईं लेकिन बाद में मान गईं। विवाह हुआ तो पत्नी संगीता राठौर ने कभी विरोध नहीं किया। बताया कि वे इमाम हुसैन और उनके भतीजे हजरत कासिम की जियारत भी कर चुके हैं। चुन्ना भाई मुहर्रम में मजलिस में जाते हैं और मातम कर इमाम की शहादत का गम मनाते हैं। उन्होंने बताया कि घर का इमामबाड़ा पूरे साल सजा रहता है। मुहर्रम में पड़ोस के आठ हिंदू परिवार इमामबाड़े में अपने मन्नती ताजिये रखते हैं। मुहर्रम की नौ तारीख यानि शब-ए-आशूर में रात भर हिन्दू महिलाएं नौहाख्वानी करती हैं।