Holi of traditional colors like Choba and Argaja played in Braj is now limited to books only

टेसू के फूल
– फोटो : अमर उजाला

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ब्रज की होली में रंगों का विशेष महत्व है। तीर्थनगरी मथुरा के वृंदावन में होली गुलाल और साधारण रंग से ही नहीं बल्कि टेसू के फूलों के रंग, चोबा और अरगजा से भी खेली जाती थी। वर्तमान में चोबा और अरगजा जैसे पारंपरिक रंग किताबों में सिमट कर रह गए हैं।

ब्रज के मंदिरों में टेसू के फूलों से तैयार रंग तो दिखता है पर, इसमें वह पारंपरिक महक नहीं, जिसका उल्लेख मंदिरों की पोथियों में मिलता है। बाजार और समाज के बीच से विलुप्त होते चोबा, अरगजा और कुमकुमा रंग को लोग भूलते जा रहे हैं। यह रंग सिर्फ पोथियों में सिमट कर रह गए हैं। 

इस तरह तैयार होता है रंग

16वीं सदी के बाद से मंदिर संस्कृति में साधकों ने होली को लिखा। उनके पदों में चोबा, अगरू, अरगजा और कुमकुमा का उल्लेख जगह-जगह मिलता है। वृंदावन शोध संस्थान के शोध अधिकारी डॉ. राजेश शर्मा ने बताया कि बादशाह अकबर के दरबारी अबुल फजल ने अपने ग्रंथ आईन-ए-अकबरी में होली के रंगों का उल्लेख किया है। 

इसमें बनाने की विधि भी बताई है। उन्होंने बताया कि चोबा मिट्टी, चावल की भूसी, कपास एवं अगरू की लकड़ी से तैयार किया जाता था। वहीं अरगजा मैदा, चोबा, बनफशा, गेहला, गुलाल, चंदन एवं कपूर के मिश्रण से तैयार होता है।

होली के गायन में भी रंगों के बारे में सुना जा सकता है

स्वामी रूपरसिक देवजी ने अपनी वाणी में इन रंगों का उल्लेख किया है कि प्यारे तुम जैसे खेलत हौं तैसें कैसें मन मानैं मेरी होरी। चोवा, चंदन और अरगजा, केसरि गागरि ढोरी।। राधावल्लभ मंदिर के सेवायत सुक्रत लाल गोस्वामी ने बताया कि मंदिरों की होली परंपरा में चोबा और अरगजा का उल्लेख पांच सौ साल से मिलता है। मंदिरों में होली के गायन के दौरान भी इन रंगों के बारे में सुना जा सकता है।



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