बुधवार की सुबह मुहर्रम के दसवें दिन ताजिया उठाने का सिलसिला शुरू हुआ तो देर रात तक अनवरत चलता रहा। शहर की 28 अंजुमनों ने अलम, दुलदुल और ताजिया के 11 जुलूस उठाए। जंजीर और कमा के मातम के साथ खून का नजराना भी पेश किया। सर्वाधिक जुलूस दरगाह ए फातमान में पहुंचे।
इसके बाद सदर इमामबाड़ा लाटसरैया, शिवाला घाट और हसन बाग टेंगरा मोड़ का नंबर रहा। शहर से लेकर गांव तक अलम, दुलदुल और ताजिया का जुलूस निकला तो हिंदू समाज के लोगों ने भी जगह-जगह शबील लगाकर अजादारों को शरबत और पानी पिलाया।
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कोई नारा लगा रहा था कर्बला दूर है जाना जरूर है… तो कोई हुसैनियत जिंदाबाद…। जंजीर और कमा का मातम देखकर लोगों की आंखें अश्कबार हो गईं। शाम को जुलूस ठंडा होने के बाद शाम ए गरीबां की मजलिसों का आयोजन हुआ। इसमें हुसैन की शहादत के बाद का हाल बयां किया गया।
ख्वातिन की मजलिस भी जगह-जगह होती रही। इस अवसर पर प्रसाद के रूप में खिचड़ा, मलीदा और हलवा का वितरण किया गया। 72 शहीदों की याद में जगह-जगह लोगों ने मेडिकल कैंप लगाकर अजादारों की खिदमत की। ख्वातिन ने खीर, मलीदा और हलवा इमाम के रौजे पर फातिहा कराई और लागों में तकसीम किया। इसके साथ ही छह महीने के शहीद अली असगर के नाम पर बच्चों को दूध पिलाया गया। अंत में अलविदाई मजलिस के साथ मुहर्रम के पहले असरे का समापन हुआ।
ये ताजिये रहे आकर्षण का केंद्र
शहर में निकले ताजियों में बुराद का ताजिया, रांगे का ताजिया, पीतल का ताजिया, मोतीवाला ताजिया, शीशे वाला, नगीने वाला, जरी वाला, चपरकट की ताजिया आकर्षण का केंद्र रहे। बजरडीहा, खोजवां, बाकराबाद, जैतपुरा, चौक, कर्णघंटा, मंडुवाडीह, ककरमत्ता के ताजिए दरगाह ए फातमान, पठानी टोला, दोषीपुरा, चौहट्टा, मुकीमगंज, पड़ाव के ताजिये सदर इमामबाड़ा पहुंचे, दुर्गाकुंड का तालिया शिवाला पर और रामनगर के सभी ताजिय इमामबाड़ा हसनबाग टेंगरामोड़ पहुंचे। इस अवसर पर उलेमा ने तकरीर की और शायरों ने कलाम पेश किए।
भारत में अगर आ जाता तो हृदय में उतारा जाता
दरगाह ए फातमान में मजलिस को खिताब करते हुए हाजी फरमान हैदर ने कहा कि इमाम हुसैन ने ख्वहिश जाहिर की थी यजीद जंग ना कर मैं भारत चला जाऊंगा। हुसैन अगर भारत आते तो काशी में ही आते और गंगाजल से उनका स्वागत किया जाता।