Independence Day 2023 Tiranga Barfi of varanasi gave sleepless nights to British

तिरंगा बर्फी
– फोटो : facebook

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आजादी की लड़ाई में बनारस का भी विशेष योगदान रहा है। स्वतंत्रता सेनानियों के साथ-साथ यहां के मिठाई कारोबारियों ने भी अपने तरीके से भरपूर साथ दिया था। देश की आजादी की लड़ाई के दौरान जब अंग्रेजी हुकूमत ने तिरंगा लहराने पर रोक लगा दी तो तिरंगा बर्फी के जरिए लोगों में देशभक्ति की भावना जगाई जाती थी। तिरंगे पर रोक के दौर में लोग तिरंगी बर्फी हाथों में लिए घूमते थे। इसके बाद बनारस से ही जवाहर लड्डू, गांधी गौरव, मदन मोहन, वल्लभ संदेश, नेहरू बर्फी के रूप में राष्ट्रीय मिठाइयां सामने आईं।

तिरंगी बर्फी और तिरंगे जवाहर लड्डू में आज की तरह रंग का उपयोग नहीं हुआ था। हरे रंग के लिए पिस्ता, सफेद के लिए बादाम और केसरिया के लिए केसर का प्रयोग कर तिरंगे का रूप दिया गया था। तिरंगा बर्फी को 1940 में श्रीराम भंडार के संचालक रघुनाथ दास ने ईजाद किया था। इसकी लोकप्रियता देख  फिरंगियों की नींद उड़ गई।

रंग के लिए केसर और पिस्ता का इस्तेमाल

आज भी तिरंगी बर्फी का प्रचलन आमजन के बीच कम नहीं है। तिरंगा बर्फी में रंग के लिए केसर और पिस्ता का इस्तेमाल किया जाता है। पुराने लोगों के अनुसार तिरंगा बर्फी को देखने के बाद अंग्रेजों के होश उड़ गए थे। बाबा बंगाली स्वीट्स महमूरगंज के संचालक राजन यादव ने बताया कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को सबसे अधिक तिरंगा बर्फी बिकती है। स्कूलों  के अलावा बाहर से भी ऑर्डर आते हैं। 



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