उत्तर प्रदेश में परिवहन विभाग के निजी फिटनेस सेंटरों पर वसूली हो रही है। फिटनेस के नाम पर दो से तीन गुना अधिक रकम ली जा रही है। झांसी प्रकरण इसका प्रमाण है। अन्य जगह से भी इस तरह की शिकायतें मिली हैं। ऐसे में परिवहन विभाग ने वसूली रोकने की नई रणनीति अपनाई है। सभी सेंटरों पर अब गोपनीय तरीके से निगरानी होगी। कुछ स्थानों पर विभागीय कार्मिकों को वाहन स्वामी बनाकर भेजा जाएगा।
प्रदेश में ऑटोमेटेड टेस्टिंग सेंटर (एटीएस) बनाए जा रहे हैं। झांसी, गाजियाबाद और बिजनौर में एटीएस संचालित हैं। फिरोजाबाद, कानपुर देहात, वाराणसी, मुरादाबाद और बरेली में ये सेंटर इसी माह से शुरू हो जाएंगे। इन सभी का संचालन निजी फर्म कर रही है। जबकि, लखनऊ में वाहन परीक्षण एवं प्रमाणीकरण केंद्र है। यहां निजी कंपनी के कार्मिकों के साथ ही विभागीय कार्मिक भी मौजूद रहते हैं।
संचालक, मैनेजर सहित 10 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज
झांसी में सेंटर शुरू होते ही यहां विभाग की ओर से निर्धारित शुल्क से तीन से चार गुना वसूली शुरू हो गई। जांच में मामला सही पाए जाने संभागीय निरीक्षक (आरआई) संजय सिंह ने फिटनेस सेंटर के संचालक, मैनेजर सहित 10 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। अन्य सेंटर से भी शिकायतें आ रही हैं।
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सेंटरों के निजी हाथों में जाते ही शिकायतों को विभाग ने बड़ी चुनौती माना है। अब इसे रोकने की रणनीति तैयार की गई है। निजी फिटनेस सेंटरों की गोपनीय तरीके से निगरानी की जाएगी। जहां भी शिकायतें मिलेंगी, उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। सेंटरों की निगरानी के लिए अलग से गाइडलाइन भी तैयार की जा रही है।
निजी वाहनों का हर साल 600 रुपया शुल्क लगता है
विभाग की ओर से कॉमर्शियल वाहनों का आठ साल तक (हर दूसरे साल) फिटनेस कराना होता है। छोटे वाहनों के लिए 800 और दूसरे वाहनों के लिए 1200 रुपया शुल्क निर्धारित है। आठ साल बाद हर साल फिटनेस कराना होता है। निजी वाहनों का हर साल 600 रुपया शुल्क लगता है।