
आर्य सभ्यता देशी या विदेशी?
(भारत) हम जब आज भी स्नान करते हैं तो इस मंत्र द्वारा पवित्र नदियों का अपने जल मे आह्वान करते हैं।
गंगा च यमुना चैवा गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधि कुरु:
अब ये नदियाँ केवल उत्तर भारत मे हों, ऐसा तो नहीं है, ये सारे भारत मे उत्तर से दक्षिण तक और अब विभाजन के बाद सिंधु नदी पाकिस्तान मे भी हैं। उत्तर भारत मे गंगा, यमुना व सरस्वती आदि ही हैं।
लिबरल, वाम पंथी लोगों ने हमें आज तक यही ज्ञान दिया कि आर्य लोग १५०० ईसा पूर्व अर्थात केवल 3522 वर्ष पहले भारत मे आये और देश के उत्तरी भागों मे बस गए। यहाँ के मूल निवासियों को आर्यों ने दक्षिण मे भगा दिया आदि आदि।
ऐसा लिख देने का इन का एक एजेंडा ही था, ताकि हम लोग भी इस देश को धर्म शाला से अधिक कुछ महत्त्व न दें।
दूसरा मकसद था उत्तर व दक्षिण के लोगों मे द्वेष कायम करना।
तीसरा मकसद था मुगलों को भी आर्यों की तरह बाहर से ही आये बता कर उनके इस देश पर दावे को मजबूती प्रदान करना। ताकि हम भारत वासी मुगलों को बाहरी न समझें, मन में ये ही भाव रहे कि हम आर्य भी तो इनकी तरह बाहर के ही हैं।
एक बेवकूफ तो कल ये कह रहा था कि भारत मे आर्यों से कई हजार साल पहले दूसरी सभ्यताएं आई, आर्य तो कल के आये हुए हैं। यानि कुछ भी?इसका अर्थ क्या ये समझें कि भारत की भूमि खाली पड़ी थी और यहाँ जनसंख्या थी ही नहीं, ऐसा नहीं है, ये सब एजेंडे के तहत ही हो रहा है,
आज मै सिद्ध करूँगा कि आर्य ही यहाँ की संतान हैं, द्रविड़ भी आर्य हैं, हमारी संस्कृति कांधार तक फैली हुई थी,
महाराज धृत राष्ट्र की पत्नी गांधारी, कंधार की ही थी जो आज का अफगानी स्तान है।
आज मै कई प्रमाणों से सिद्ध करूँगा कि इन वाम पंथी लेखकों ने सब जगह केवल झूठ ही परोसा है।
पहला प्रमाण
ये कहते हैं कि यहाँ द्रविड़ लोग ही रहते थे और आर्यों ने उन्हे दक्षिण मे धकेल दिया था।यदि ऐसा हुआ तो फिर दक्षिण मे पुलस्थ ऋषि जो आर्य थे कहाँ से आ गए? ये नाम तो केवल एक का लिया है और भी अनेक ऋषि मुनियों की तप स्थली दक्षिण भारत रहा है।
दूसरा प्रमाण
ये लिखते हैं कि जाति वाद व वर्ण व्यवस्था आर्यों मे ही थी तो फिर दक्षिण मे ब्राह्मणों की जो भर मार है वो कहाँ से आई?
और वहाँ के ब्राह्मणों का रंग रूप बिल्कुल दक्षिण मे रहने वाले लोगों जैसा ही है। इसके अलावा दक्षिण मे भी वर्ण व्यवस्था उत्तरी भारत की तरह ही है, अर्थात vibhin जातियों का होना।
इस हिसाब से तो द्रविड़ों मे जाति व्यवस्था होनी ही नहीं चाहिए थी, वहाँ छोटी बड़ी सभी जातियाँ हैं
तीसरा प्रमाण वैसे तो ये दुष्ट प्रवृत्ति के लोग राम जी को भी और कृष्ण जी को भी काल्पनिक बताते आ रहे हैं, जो नीचता की प्रकाष्ठा ही है लेकिन
जब इनको 🙏राम जी पर शंबुक वध का आरोप लगाना हो तो ये राम🙏 जी को आर्यों की द्रविड़ लोगों पर अत्याचार की कहानी गढ़ लेते है मतलब मीठा मीठा गप्प गप्प कड़वा कड़वा थू थू, अगर वैज्ञानिक और खगोलीय दृष्टि कोण से भी देखें तो राम जी का काल आज से दस हजार वर्ष पूर्व का सिद्ध हो चुका है जबकी हम सनातनी लोग तो उनका काल इससे भी पहले का आंकते हैं, इस तरह इन लेखकों की
आर्यों के केवल ईसा से १५०० साल पूर्व आने की थ्योरी फेल हो जाती है। सब झूठ ही परोसा गया है।
चौथा प्रमाण ऊपर लिखित मंत्र मे जिन नदियों का जिकर आता है उनमें कई नदियाँ दक्षिण मे ही बहती हैं, अगस्त आदि ऋषि गोदावरी नदी के आस पास ही रहते थे।और वहाँ उनके दक्षिण भारत से ही अनेक शिष्य थे, हाँ अगस्त जी जरूर पहले उत्तर मे निवास करते थे।सिद्ध होता है कि दक्षिण के द्रविड़ भी आर्य ही हैं।
पाँचवा प्रमाण
हाल ही मे मैन पुरी मे खुदाई के दोरान निकले हथियार महाभारत काल के होने की बात सामने आई है, जिनको पुरा तत्ववेता ४००० साल पहले के होने की बात कर रहे हैं, इसके अलावा बागपत की खुदाई से भी रथ आदि निकले थे जो महा भारत काल के बताये जाते हैं
बागपत वही स्थान है जो पांडवों के पानच गावों के अंतर्गत आता है, जो दुर्योधन से मांगे गए थे।छटा प्रमाण
जब भि हम आर्य लोग पूजा या कोई शुभ कर्म करते हैं तो
जम्बू द्वीपे भरतखण्डे आर्य वर्ते***** आदि मंत्र बोलते हैं जिसका अर्थ ही हिमालय से हिंद महासागर और पूर्व से पश्चिम तक फैले भारत से है, तो सीधी सी बात है कि आर्य सारे भारत मे ही थे, क्योंकि ये ही मंत्र दक्षिण मे रहने वाले लोग भी पूजा के समय बोलते हैं।
तिब्बत से लेकर बर्मा तक सब आर्य वर्त ही कहा जाता है।
सातवां प्रमाण
आज भी बद्री नाथ मे केवल दक्षिण के ब्राह्मण जो नम्बुद्रिपाद ब्राह्मण कहलाते हैंवो ही पूजा करने के हकदार हैं, अगर आर्य केवल उतरी भारत को ही अपने कब्जे मे करते तो फिर दक्षिण के लोगों को उत्तर के मंदिरों मे क्यों बिठाया जाता।इसके अलावा केदार नाथ मे एक शिव मंदिर है जो सदियों पुराना सिद्ध हो चुका है, यह मंदिर पांडवों ने अज्ञात वास मे रहते हुए बनाया था। सिद्ध होता है कि आर्य बाहर से नहीं आये
आठवँ प्रमाण
चित्र कूट मे एक sthan गुप्त गोदावरी है, जो एक गुफा है और इसको बहुत खुबसुरती से तराशा गया है, और इसके निर्माण का प्रमाण मानस कुछ यों करती है
पृथ्महीं देवन्ह गिरी गुहा राखेसी रुचिर बनाई
राम कृपा निधि कछुक दिन वास करहिन्गे आई।।
अर्थात प्रभु श्रीराम जी के सम्भावित निवास करने के लिए इस गुफा का निर्माण किया गया, और ये सिद्ध हो चुका है कि ये गुफा ८ से दस हजार साल पहले की है। इन बुद्धि जीवियों की आर्यों के केवल 3522 साल पहले आने की थ्योरि फेल हो जाती है।वृंदावन मे एक निधि वन नामक स्थान है जहाँ भगवान कृष्ण जी ने रास लीला की थी, यहाँ के पौधों की उम्र भी पाँच हजार साल पहले होने की बात सिद्ध हो चुकी है।
चित्र कूट मे ही एक जगह सीता रसोई व हनुमान धारा नामक स्थान है, जहाँ माँ सीता भोजन बनाती थी, यह स्थान भी उतना ही पुराना है,
नवम् प्रमाण
ये बुद्धिजीवी संस्कृत भाषा को आर्यों की भाषा मानते हैं जो ठीक भी है, लेकिन दक्षिण के लोग जिनको ये आर्यों से अलग द्रविड़ कहते हैं, उनमें से ही कितने ही विद्वानों ने संस्कृत में कई ग्रन्थों की रचना की है,
दसवां प्रमाण
हमारे देश मे लगभग सभी जगहों पर शिव परिवार के सदस्यों की पूजा कमोबेश होती ही है, केवल ये हो सकता है कि कोई शिव की तो कोई कर्तिकेय जी कोई गणेश जी व कोई पार्वती माँ के विभिन्न रूपों में से किसी की भी, पूजा करता है।