Isauli is a big challenge for Menka Gandhi on Sultanpur Loksabha seat.

भाजपा सांसद मेनका गांधी।
– फोटो : amar ujala

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पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी एक बार फिर सुल्तानपुर सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। इस बार भी उनके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इसौली विधानसभा क्षेत्र ही है, जिसे भद्र बंधुओं का गढ़ माना जाता है। भद्र बंधुओं के समर्थन से जहां 2014 में वरुण गांधी को आसान जीत मिली थी, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी बन जाने पर मेनका गांधी को जीतने में मशक्कत करनी पड़ी थी।

वर्ष 2014 में वरुण गांधी जब इस सीट से चुनाव लड़े थे तो इसौली के चंद्रभद्र सिंह सोनू और यशभद्र सिंह मोनू उनके समर्थन में थे, लेकिन 2019 में परिदृश्य बदल गया। मेनका गांधी मैदान में उतरीं तो उनके सामने बसपा-सपा गठबंधन से प्रत्याशी के रूप में चंद्रभद्र सिंह सोनू उतर पड़े। ऐसे में जब मतदान हुआ तो भद्र परिवार के वर्चस्व वाले क्षेत्र इसौली में मेनका को 79382 और सोनू को 84933 वोट मिले। यहां से करीब साढ़े पांच हजार से पिछड़ने वाली मेनका गांधी को सुल्तानपुर विधानसभा क्षेत्र में भी झटका लगा। उन्हें 87848 और सोनू सिंह को 100411 वोट मिले।

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लंभुआ विधानसभा क्षेत्र ने भी उनका ज्यादा साथ नहीं दिया और उन्हें करीब एक हजार मतों की ही बढ़त मिली। गनीमत रही कि कादीपुर और सदर विधानसभा क्षेत्र ने खुलकर मेनका गांधी का साथ दिया, जिसके चलते उन्हें यहां से करीब 32 हजार वोट ज्यादा मिले।

इस बढ़त ने न केवल इसौली और सुल्तानपुर सीट पर हार के अंतर को पाटा बल्कि उन्हें 13,859 वोटों से जीत भी दिला दी। अब इन दोनों सीटों पर पिछले अनुभव को देखते हुए मेनका क्या रणनीति अख्तियार करती हैं, यह देखना रोचक होगा। 

वर्ष 2019 में भाजपा व बसपा प्रत्याशी को विधानसभावार मिले मत

विधानसभा क्षेत्र — भाजपा — बसपा

इसौली — 79382 — 84933

सुल्तानपुर — 87848 — 100411

सदर — 95550 — 78332

लंभुआ — 91388 — 90392

कादीपुर — 104113 — 90354

कुल — 4,58,281 — 4,44,422

तो भद्र परिवार से लेनी होगी टक्कर

पिछले चुनाव के रनर अप रहे चंद्रभद्र सिंह सोनू और उनके भाई यशभद्र सिंह मोनू एक केस में सजायाफ्ता होने के कारण अब चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, लेकिन जिले के सियासी जानकार मानते हैं कि इससे उनके जनाधार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सांसद मेनका गांधी और भद्र परिवार के रिश्ते जिस तरह से बेहद तल्ख हैं, उसे देखते हुए साफ है कि भद्र परिवार फिर चुनाव में उनका विरोध में ही रहेगा। ऐसे में इसौली का गढ़ भेदना पहले जैसा आसान नहीं होगा।



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