बड़ा खुलासा: उरई जिला महिला अस्पताल में डॉक्टर और निजी फार्मेसी की ‘मिलीभगत’ से गर्भवती महिलाओं की लूट
मीडिया कमरे में आईं पीड़िताएं, बोलीं – “जांच के नाम पर महंगी दवाएं थमाकर ठगा गया
ब्यूरो रिपोर्ट सोनू महाराज
(उरई जालौन ) उरई: जनपद जालौन सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के दावों और ‘मुफ्त इलाज’ के नारों के बीच उरई जिला महिला अस्पताल का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां तैनात एक डॉक्टर पर गर्भवती और प्रसूता महिलाओं को जानबूझकर महंगी बाहरी दवाएं लिखकर आर्थिक रूप से लूटने का आरोप लगा है। मरीजों का कहना है कि अस्पताल में मुफ्त उपलब्ध दवाओं के बजाय उन्हें प्राइवेट मेडिकल स्टोर से ₹1000 से ₹1500 तक की दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर किया गया। जब इसकी शिकायत का कोई रास्ता नहीं मिला, तो कई पीड़ित महिलाएं सीधे मीडिया के सामने पहुंचकर अपना दर्द बयां करने लगीं।
डिलीवरी के बाद भी नहीं छोड़ा, बाहर की दवा लिख दी
मीडिया कमरे में मौजूद एक महिला ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “डॉक्टर साहब (ए.के. सिंह) ने कहा कि अस्पताल में दवा नहीं है, बाहर से लेनी पड़ेगी। दो दिन बाद जब दवा लेकर आई, तो उन्होंने फिर नई पर्ची देकर दूसरी दवा मंगवाई। डिलीवरी के बाद छुट्टी करते वक्त भी ₹1200 की टॉनिक लिख दी।”
एक अन्य मरीज ने आरोप लगाया,
“जांच रिपोर्ट्स के नाम पर भी पैसे ऐंठे गए। ऑपरेशन वाली महिलाओं को तो और ज्यादा घेरा जाता है।”
क्या है पूरा मामला
आरोप
डॉ. ए.के. सिंह द्वारा सरकारी गाइडलाइन को नजरअंदाज करते हुए निजी फार्मेसी से दवाएं लिखी जा रही हैं। हर मरीज के लिए अलग पर्ची बनाकर उन्हें महंगी दवाओं की लिस्ट थमाई जाती है।
शिकायत
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत प्रसूता महिलाओं को मुफ्त दवा-इलाज का अधिकार है, लेकिन यहां व्यवस्था ही ध्वस्त नजर आई।
बड़ा सवाल: क्यों टूट रहा है सरकारी स्वास्थ्य तंत्र
यह मामला सिर्फ एक डॉक्टर की लापरवाही नहीं, बल्कि पूरी प्रणाली की खामियों को उजागर करता है।
- दवाओं की कमी क्या सच में अस्पताल में जरूरी दवाएं नहीं थीं, या फिर जानबूझकर स्टॉक गायब रखा गया।
- निगरानी का अभाव
अधिकारी महीनों से अस्पतालों के औचक निरीक्षण से क्यों बचते रहे।
- मरीजों का डर शिकायत दर्ज कराने के लिए महिलाओं के पास कोई सुरक्षित मंच क्यों नहीं है।
अब क्या बदलाव की उम्मीद
डिजिटल पर्ची व्यवस्था
ई-पर्ची को अस्पताल की फार्मेसी से लिंक किया जाएगा, ताकि डॉक्टर बाहरी दवाएं न लिख सकें।
जनता की निगरानी
अस्पतालों में दीवार पोस्टर लगाए जाएंगे, जिन पर मुफ्त दवाओं की सूची और हेल्पलाइन नंबर होंगे।
आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका
गांव-गांव में महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाएगा।