संवाद न्यूज एजेंसी

उरई। जिले में लगातार कुत्तों की काटने की घटना में इजाफा हो रहा है। मुख्यालय के साथ ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के लिए कुत्ते लगातार लोगों को जख्मी कर रहे हैं। इन कुत्तों और घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए प्रशासन के पास कोई खाका नहीं है। किसी दिन गाजियाबाद वाली घटना शहर में न दोहरा जाए।

कुत्तों के काटने का आंकड़ा चौंकाने वाला है। जिसमें सबसे ज्यादा केस जिला अस्पताल के हैं। उसके बाद माधौगढ़, रामपुरा के केस हैं। जो आंकडे सामने आए हैं। उसके मुताबिक जिले भर में जनवरी से अगस्त तक आठ माह में 12 हजार 397 लोगों को कुत्ते लोगों को अपना शिकार बना चुके हैं। इन आंकड़ो के बाद भी प्रशासन स्तर पर कोई अभियान या कुत्तो पर लगाम लगाने के लिए प्रसास नहीं किए जा रहे हैं। क्योंकि जिन विभागों का काम है। उन्हें अपनी जिम्मेदारी तक नहीं पता है। उन्हें भी शासन का आदेश का इंतजार है। केसों की बात करें तो आठ माह में उरई के जिला अस्पताल में 12397 लोगों पहुंचे हैं। सबसे ज्यादा फरवरी,मार्च में पहुंचे थे।

जालौन के स्वास्थ्य केंद्र में 1945 लोग पहुंचे। माधौगढ़ में 1368 स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। रामपुरा में 726, नदीगांव में 271 लोग, कोंच में 1209, कालपी में 666, कदौरा में 897, डकोर में 163, कुठौंद में 1195, बाबई में 305, पिंडारी में 458, छिरिया में 164 रैबीज का इंजेक्शन लगाने के लिए मरीज स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। इन मरीजों की संख्या सरकारी आंकडे में दर्ज है। जबकि प्राइवेट के अस्पताल में कितने लोग पहुंच रहे हैं। इसका कोई आंकड़ा नहीं है। इन आंकड़ों के बाद भी किसी भी पालिका, पंचायत के पास किसी भी प्रकार के कोई उपकरण इन कुत्तों को पकड़ने के लिए नहीं है। जबकि कुत्ते के काटने की कई घटना हो चुकी हैं। जिनसे लोग सहम चुके हैं। वहीं शहर के बजरिया में लगातार इन कुत्तों का आतंक बढ़ रहा है। उसके बाद भी इन कुत्तों को पकड़ने के लिए कोई अभियान नहीं चलाया गया। न ही कोई टीम अभी तक बनी है।

न मिर्च कोई दवा नहीं

रैबीज नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. एसडी चौधरी ने बताया कि नमक, मिर्च कोई दवा नहीं है। 24 घंटे से पहले ही एआरवी का इंजेक्शन लगवाए। जिससे कीटाणु नष्ट हो जाएंगे। अगर कुत्ता,बिल्ली,बंदर काटे तो तुरंत साबुन या सोडा से दस से 15 मिनट तक घाव को धोते रहें। जिससे अधिकतर कीटाणु नष्ट हो जाएंगे। इसके साथ ही अन्य भी कोई कीड़ा काटता है। एक बार डॉक्टर की सलाह जरुर लें। जादू, टोना टोटका से बचें।

लक्षण से करें रैबीज की पहचान

-भूख नहीं लगने के साथ चक्कर आना, ज्यादा थकान रहना, शरीर में जोर से दर्द होना

– बार बार उल्टी आना, शरीर में ऐंठन होना,मुंह से लार निकलना,स्वभाव में बदलाव होना

– बात-बात पर चिड़चिड़ापन होना, गर्दन में अकड़न या नश चढ़ना,होश में नहीं रहना,उल्टी सीधी हरकत करना

संक्रमित कुत्ते के काटने से होती है रैबीज की बीमारी

फोटो-22-जानकारी देते डॉ. एमपी सिंह।

जालौन। रैबीज के बारे में जागरूकता पैदा करने और लोगों को इस घातक बीमारी से बचाने के लिए हर साल 28 सितंबर को रैबीज दिवस मनाया जाता है। यह दिन फ्रांसीसी रसायनज्ञ और सूक्ष्म जीवविज्ञानी लुई पाश्चर की पुण्यतिथि का प्रतीक है। जिन्होंने 1885 में पहली रैबीज वैक्सीन विकसित की थी। आज यह वैक्सीन जानवरों और इंसानों के लिए अहम भूमिका निभा रही है। इसके इस्तेमाल से इंसानों में रैबीज के खतरे को कम किया जा सकता है। यह बात विश्वरैबीज दिवस पर पूर्व सीएमओ डॉ. एमपी सिंह ने कही।

विश्व रैबीज दिवस पर महान क्लीनिक में जागरूकता गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें पूर्व सीएमओ डॉ. एमपी सिंह ने बताया कि रेबीज दिवस हर साल एक नई थीम के साथ मनाया जाता है और इस साल की थीम ऑल फॉर वन, वन हेल्थ फॉर ऑल है। बताया कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार, लस्सा वायरस से संक्रमित जानवर के काटने से मनुष्यों में रैबीज का संक्रमण होता है। रैबीज का संक्रमण संक्रमित बिल्लियों, कुत्तों और बंदरों के काटने से इंसानों में फैल सकती है। डॉ. हरेंद्र सिंह ने बताया कि कुत्ते, बिल्ली या बंदर के काटने पर डॉक्टर के पास जाने से पहले घाव को अच्छी तरह से साबुन और पानी से धो लें। घाव पर जलन पैदा करने वाली चीजों को लगाने से बचें। यह सोचकर ज्यादा खून न बहाएं कि खून के साथ वायरस निकलेगा। इसके साथ ही घाव की सिलाई न करें। ऐसा करने से वायरस नर्व से रीढ़ की हड्डी तक जा सकता है। सरकारी अस्पतालों में एंटी रेबीज का टीका निशुल्क लगता है। उपचार के दौरान सावधान रहें, किसी भी तरह के नशे का सेवन न करें। डॉक्टर की सलाह के बाद ही एंटी रैबीज का टीका लगवाना चाहिए। इस मौके पर पप्पू शिवहरे, राघवेंद्र, मोहम्मद इकबाल आदि मौजूद रहे।



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