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फोटो-27-उरई रेलवे स्टेशन।
नई समय सारिणी में ठहराव बढ़े न शुरू हुई नई ट्रेन, 20 लाख की आबादी मायूस
संवाद न्यूज एजेंसी
उरई। 206 किलोमीटर लंबे झांसी कानपुर रेलमार्ग का दोहरीकरण का काम 22 फरवरी 23 को पूरा हो चुका है। करीब 2200 करोड़ की लागत से पूरे हुए काम के बाद लोगों को उम्मीद थी कि अब दोहरे ट्रैक पर न सिर्फ ट्रेनों की रफ्तार बढ़ेगी, बल्कि कई नई ट्रेनें भी इस रूट को मिलेगी लेकिन एक अक्तूबर को रेलवे बोर्ड द्वारा जारी की गई समयसारिणी में एक बार फिर जिले की 20 लाख आबादी को मायूसी हाथ लगी है। न तो झांसी कानपुर रेलमार्ग पर नई ट्रेन शुरू हुई और ही ठहराव बढ़े हैं। इससे यात्रियों की परेशानी बढ़ गई है। लोगों को ट्रेनों के स्टापेज की उम्मीदों पर पानी फिर गया है।
बता दें कि झांसी-कानपुर रेलमार्ग पर रोजाना 32 यात्री ट्रेनें और 20 मालगाड़ी का रोजाना संचालन होता है। यहां से करीब 500 यात्री नियमित यात्रा करते है और करीब तीन लाख की रोजाना आय होती है। लोगों को उम्मीद थी कि एक अक्तूबर को जारी होने वाले रेलवे के नए टाइम टेबल में ट्रेनों का स्टापेज बढ़ेगा और बिना रुके जाने वाली ट्रेनों को भी स्टापेज दिया जाएगा।
साथ ही दिल्ली, प्रयागराज के लिए भी नई ट्रेन की सौगात मिल सकती है लेकिन टाइम टेबल जारी होने के बाद झांसी कानपुर रेलमार्ग की ट्रेनों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। यहां पर बनारस से इंदौर जाने वाली महाकाल एक्सप्रेस, लखनऊ से भोपाल जाने वाली गरीब रथ और गांधीधाम से बनारस जाने वाली क्लोन साबरमती का ठहराव नहीं है।
इन तीन ट्रेनों के स्टापेज के लिए कांग्रेस, व्यापारी संगठन, अधिवक्ता और अन्य सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों ने ज्ञापन देकर इन ट्रेनों के स्टापेज की मांग की थी। इसके बाद उम्मीद बढ़ गई थी कि नए टाइम टेबल में इन ट्रेनों का स्टापेज बढ़ जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
ट्रेनों की लेटलतीफी में सुधार नहीं हो सका
समय सारिणी में सुधार न होने से ट्रेनों की चाल में भी सुधार नहीं हुआ है। झांसी से उरई और उरई से कानपुर जाने वाली ट्रेनों में समय ज्यादा लग रहा है। उरई से कानपुर जाने वाली छपरा मेल को कानपुर तक पहुंचने में तीन घंटा 40 मिनट का वक्त लग रहा है। वहीं, अहमदाबाद से बनारस जाने वाली साबरमती एक्सप्रेस से उरई से कानपुर तक पहुंचने के लिए तीन घंटा 53 मिनट का वक्त लग रहा है। अन्य ट्रेनें उरई से कानपुर पहुंचने में एक घंटा 40 मिनट से लेकर दो घंटा 20 मिनट का ही वक्त ले रही है। मुंबई से गोरखपुर जाने वाली कुशीनगर एक्सप्रेस भी साढ़े तीन घंटे से ज्यादा वक्त ले रही है।
कोरोना काल में समाप्त हुए ठहराव भी नहीं हुए बहाल
कोरोेना काल में कई ट्रेनों के ठहराव समाप्त कर दिए गए थे। इसके बाद धीरे धीरे ट्रेनों का संचालन शुरू हो गया लेकिन स्टापेज बहाल नहीं किए गए। छपरा, साबरमती व कुशीनगर जैसी ट्रेनों का स्टापेज एट व मोंठ जैसे स्टेशनों पर भी था। कोरोना काल में इन स्टेशनों से स्टापेज समाप्त कर दिया गया। लोगों ने स्टापेज बहाली के लिए कई बार केंद्रीय राज्यमंत्री व स्थानीय सांसद भानुप्रताप वर्मा को ज्ञापन भी दिए थे। उन्होंने भी स्टापेज बहाली का भरोसा दिया था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो पाई।
-जिले के लोगों को थी केंद्रीय राज्यमंत्री से थी उम्मीद
कांग्रेस जिलाध्यक्ष दीपांशु समाधिया का कहना है कि उन्होंने रेल संबंधी समस्याओं के लिए पार्टी नेताओं के साथ रेल अधिकारियों को ज्ञापन भी दिया था। इसमें समस्याओं के समाधान की मांग उठाई थी लेकिन नए टाइम टेबल में जिले के करीब बीस लाख को आबादी की मायूसी हाथ लगी है। जबकि जिले के केंद्रीय राज्यमंत्री भी है। जिनसे जिलेवासियों को काफी उम्मीद थी।
-नया टाइमटेबल निर्धारित समय पर लागू कर दिया गया है। ट्रेनों के स्टापेज और नई ट्रेनों की डिमांड कभी भी पूरी की जा सकती है। ट्रैक की क्षमता के अनुसार ट्रेनों के स्टापेज और नई ट्रेनों का संचालन होता है। साल भर में जो बदलाव होते है, वह टाइम टेबल में शामिल कर लिए जाते हैं। यदि कोई ट्रेन इस रूट पर चलेगी तो उसे अगले टाइम टेबल में शामिल किया जाएगा। जो ज्ञापन आए है। उन पर विचार किया जा रहा है।
अमित मालवीय, पीआरओ एनसीआर रेलवे
कनेक्टिंग ट्रेन छूटने का डर
फोटो-28-सौरभ निरंजन।
सतोह निवासी सौरभ निरंजन ने बताया कि उन्हें पटना जाना था। इसके लिए वह साबरमती से जाना चाह रहे थे। साबरमती कानपुर रात 11.25 बजे पहुंचना दिखा रही थी। जबकि उनकी पटना की ट्रेन भी उसी वक्त है। उन्हें भय है कि साबरमती के चक्कर में उनकी ट्रेन न निकल जाए। इसलिए वह बस से कानपुर तक जाएंगे।
बस का किराया ज्यादा, फिर भी मजबूरी
फोटो-29-शमसाद अली।
शहर के मोहल्ला प्रेमनगर निवासी शमसाद अली ने बताया कि वह अपने एक मित्र को दिखाने कानपुर जा रहे हैं। ट्रेन जाने वाली ट्रेनें बहुत अधिक समय ले रही है। बसों का किराया ज्यादा है। फिर भी मजबूरी में वह बस के जरिए ही कानपुर जाएंगे।