उरई। कालपी में हाथ से बनाए जाने वाला कागज अब विदेशों में भी छाएगा। पहली बार हस्त निर्मित कागज से जुड़े उद्यमी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल फॉर हैंडीक्राफ्ट (ईपीसीएच) की ओर से यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो (यूपीआईटीएस) के तहत नोएडा के एक्सपो मार्ट में लगाए जाने वाले फेयर में भाग लेने जा रहे हैं। इस फेयर में अमेरिका, यूरोप सहित कई देशों के करीब 400 वायर पहुंचेंगे। जो प्रदेश के उत्पादों के साथ ही कालपी के कागज को भी परखेंगे। उद्यमियों ने अभी से इसको लेकर तैयारी करते हुए स्टॉल बुकिंग को लेकर कोशिशें शुरू कर दी हैं। उम्मीद है कि उनको हैंड पेपर की खासियत नजर आएगी और पहली बार विदेशों का बड़ा आर्डर कालपी के इन उद्यमियों को मिलेगा।
हस्त निर्मित कागज के पुराने कारोबारी बताते हैं कि कालपी में इस कागज का इतिहास पांच सौ वर्ष पुराना है। आल्हा-ऊदल की किताब में भी इसका जिक्र है। हालांकि 1933 में कागज बनाने का काम कालपी में नजर आने लगा था। कालपी में बनने वाले इस कागज की बहुत डिमांड रही है। सरकारी लिफाफे से लेकर कागज भी कालपी होनहार श्रमिकों के हाथों से तैयार किए होते थे। बताते हैं कि सरकार सीधे कारोबारियों से ये कागज खरीद करती थी। बाद में बिचौलिए आ गए और फिर इस मजबूत कागज की सेल कमजोर हो गई। आमदनी घटने से कारोबारियों का हौसला टूटा और फिर फैक्ट्री कम होने लगीं। अब प्रदेश सरकार द्वारा कालपी के हस्त निर्मित कागज को जियोलॉजिकल इंडीकेशन (जीआई) टैग दिए जाने से कारोबारियों का हौसला बढ़ गया है। इस टैग के मिलने से अब कालपी के कागज को विदेशी भी विश्वास के साथ खरीद सकेंगे। इसी हौसले की बदौलत 21 से 25 सितंबर को नोएडा में लगने जा रहे फेयर में ज्यादा से ज्यादा कागज उद्योग के उद्यमी हिस्सा लेने की तैयारी में हैं।
खादी कमीशन बॉम्बे की रहती थी बड़ी डिमांड
-कालपी के कागज की बड़ी डिमांड खादी कमीशन बॉम्बे को रहती थी। इसके अलावा लखनऊ खादी बोर्ड भी कालपी के कागज की खूब खरीदारी करता था। यह जानकारी बताते हुए हस्त निर्मित कागज समिति के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र कुमार तिवारी ने बताया कि पूर्व में सौ फैक्ट्रियां होती थी, लेकिन बिचौलियों के चक्कर में वर्तमान में 65 हैं। जीआई और ओडीओपी में लोन लेने पर 25 प्रतिशत की छूट की योजना के बाद हौसला बढ़ा तो चार फैक्टरियां और चालू हो गईं।
देश भर से आने वाली कतरन से बनता है मजबूत कागज
-कारोबारी नरेंद्र कुमार तिवारी बताते हैं कि कॉटन कपड़ों की कतरन जो पूरे देश से आती है, उसको कारीगर पीसते हैं और भट्टी में घोलने के बाद उसकी सीट तैयार होती है। इसमें फिनिशिंग के लिए कटिंग और चिकना करने के लिए ग्रेड मशीन का सहयोग लेते हैं।
32 करोड़ तक का होता है कारोबार
-कारोबारी बताते हैं कि औसतन एक फैक्ट्री साल में 50 लाख रुपये तक का कारोबार करी है। इस हिसाब से 65 फैक्टि्रयों का कारोबार 32 करोड़ से ज्यादा तक पहुंच जाता है। दिल्ली के चावड़ी बाजार की करीब ढाई हजार दुकानों में सबसे ज्यादा कालपी का कागज पहुंचता है।
नोएडा में यूपीआईएस के तहत सितंबर में पांच दिवसीय लगने वाले फेयर में स्टॉल लगाने से कालपी के उद्यमियों का हौसला बढ़ेगा। जो विदेशी वायर आएंगे, उम्मीद है वे मजबूत कागज की खाशियत को परखेंगे और अच्छा कारोबार होगा। हम स्टॉल बुकिंग की जोर शोर से तैयारी कर रहे हैं।
नरेंद्र कुमार तिवारी, प्रदेश अध्यक्ष, हस्त निर्मित कागज समिति