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रिपोर्ट विजय द्विवेदी (जगम्मनपुर ब्यूरो चीफ) ✍️

(उरईजालौन) जगम्मनपुर:  दो हजार वर्ष से अधिक प्राचीन कर्ण देवी मंदिर में विराजमान देवी का रहस्य अभी भी अनसुलझा है ।
जनपद जालौन अंतर्गत जिला मुख्यालय उरई से 70 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम के पंचनद तीर्थ क्षेत्र में यमुना तट पर हजारों वर्ष प्राचीन विशाल दुर्ग के खंडहरों पर विद्यमान कर्ण देवी मंदिर में विराजमान देवी मां का रहस्य आजतक कोई नहीं जानता है । मुगल आक्रांता बाबर से मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह और राणा सांगा से हुए युद्ध में उस काल के बहुत अधिक समृद्धशाली कनार राज्य से मेंवाड़ के पक्ष में सैन्य सहायता गई थी जिसमें युद्ध के दौरान कनार सेना का नेतृत्व कर रहे राजकुमार शहीद हो गए थे और राणा सांगा की पराजय व आक्रांता बाबर की फतह के साथ गौरवशाली भारत के सौभाग्य का सूर्य अस्ताचलगामी हो चला था। विजय मद में चूर बाबर कनार राज्य की ओर बढ़ चला और तीर कमान ,बर्छी भाला, तलवारों से युद्ध करने वाले राजपूत सैनिकों पर तोप से आक्रमण करते हुए कनार राज्य के विशाल दुर्ग को क्षतिग्रस्त कर डाला। आत्मरक्षस एवं अपनी प्रजा की रक्षा के लिए तत्कालीन राजा ने कनर दुर्गा को छोड़ दिया निरंकुश बाबर ने महल के अंदर बने मंदिरों को तोड़फोड़ कर उनकी मूर्तियों को खंडित कर डाला। तत्कालीन पुजारी ने शिव मंदिर के शिव विग्रह एवं राजा की कुलदेवी की मूर्ति की रक्षा करते हुए कुएं में डाल दिया जो वर्ष 1978 में तत्कालीन बाल संत बाबा बजरंगदास ने अपने प्रथम यज्ञ में कर्णखेरा टीला पर साफ सफाई करवाने के दौरान कुआं का भी जीर्णोद्धार करवाया तब उसमें दो विशाल शिवलिंग एवं देवी मूर्ति का अर्ध भाग प्राप्त हुआ जो आज भी कर्ण देवी मंदिर पर पूजा जा रहा है।
मान्यता है कि यह मंदिर 2000 वर्ष या उससे भी बहुत अधिक पुराना है। जब उज्जैन में महाप्रतापी धर्मात्मा राजा विक्रमादित्य का राज्य था उसी समय कनार पर महाराज सिद्धराज शासन कर रहे थे । जिस प्रकार जनकपुर के राजा को जनक नाम से जाना जाता था उसी प्रकार कनार के राजा को कर्ण की उपाधि प्राप्त थी। अतः महाराजा विक्रमादित्य के समकालीन महाराज सिद्धराज कर्ण अपनी दानवीरता के कारण दसों दिशाओं में प्रसिद्धि पा रहे थे। महाराज विक्रमादित्य कनाराधिपति महाराज सिद्धराज कर्ण की यशो गाथा सुनकर कनार राज्य में आए और छद्म वेश धारण कर महाराज कर्ण के विशेष सुरक्षा बल का हिस्सा बन गए और प्रतिदिन दान करने के लिए उन्हें प्राप्त होने वाले स्वर्ण भंडार का रहस्य जाने का प्रयास करने लगे अंतोगत्वा उन्होंने देखा कि राजा के द्वारा स्वयं का बलिदान करने एवं देवी द्वारा राजा को पुनर्जीवित करने तथा मंदिर में विराजमान देवी मां द्वारा उन्हें प्रतिदिन सवामन अर्थात 50 किलो स्वर्ण प्रदान करने की विधि को देखा। इसके बाद महाराज विक्रमादित्य ने भी महाराज सिद्धराज कर्ण की विधि अपनाकर देवी को प्रसन्न कर अपने साथ उज्जैन चलने को राजी कर लिया इसी बीच महाराज सिद्धराज कर्ण आ गए और उन्होंने देवी के चरण पड़कर कनार राज्य छोड़कर ना जाने की प्रार्थना की अपने दौनो भक्तों का मान रखते हुए देवी जी के कमर से चरणों तक का हिस्सा यही कनार पर रह गया जिसे लोग आज कर्ण देवी के नाम से पूज रहे हैं और कमर से ऊपर का भाग महाराज विक्रमादित्य के साथ उज्जैन चला गया जहां उन्हें हरसिद्धि माता के रूप में पूजा जाता है। कनार राज्य का पर कर्ण देवी एवं उज्जैन की हरसिद्धि माता का वास्तविक स्वरूप और नाम क्या है यह आज तक कोई नहीं जानता ना किसी पुस्तक में इस विषय पर प्रकाश डाला गया। दो हजार से अधिक वर्ष से यह परंपरागत ढंग से पूजित माता अपने मंदिर में स्थानीय लोगों द्वारा दिए गए करन देवी , करणी माता , कर्ण देवी नाम से पूजित है।

रात में भ्रमण करती अदृश्य शक्तियों का एहसास
करन देवी मंदिर सेंगर क्षत्रियों की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती हैं अतः यह लिखने में कोई संकोच नहीं कि सेंगर क्षत्रियों ने अपनी कुलदेवी माता विंध्यवासिनी के रूप में यहां मूर्ति स्थापित की हो लेकिन इस विषय पर कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं है । पूरे देश भर के सेंगर क्षत्रियों की राजधानी रहा कनार राज्य का यह विशाल दुर्ग भले ही खंडहर हो गया लेकिन यहां मंदिर पर कर्ण देवी माता की निरंतर पूजा होती रहती है। यह कर्ण देवी माता दुर्गा, काली अथवा महामाया विंध्यवासिनी मैया है या और कोई देवी स्वरूप है किसी को प्रमाणित रूप से नहीं पता, लेकिन रात में कर्ण खेरा पर रात्रि विश्राम करने पर एकांत में बैठने पर यहां एहसास होता है कि कोई अदृश्य शक्तियां मंदिर एवं किला के खंडहर कर्णखेरा पर विचरण कर रही हैं । गलत भावना रखने वाले इस एहसास से भयातुर होते हैं वहीं पवित्र भावना के लोग सुरक्षा की अनुभूति करके आनंदित होते हैं।

नवरात्रि में लगता है मेला

कर्ण देवी मंदिर जनपद जालौन के प्रमुख देवी मंदिरों में शुमार है यहां वर्ष भर तो भक्तों का आना-जाना लगा ही रहता है लेकिन प्रतिवर्ष चारों नवरात्रि में अनेक साधन यहां विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान करते रहते हैं । विशेष रूप से चैत्र नवरात्रि एवं शारदीय नवरात्रि पर यहां आस-पास के हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन को अपना सौभाग्य मानते हैं । यह भी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगने पर मातारानी अपने भक्तों की मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है।

By Parvat Singh Badal (Bureau Chief Jalaun)✍️

A2Z NEWS UP Parvat singh badal (Bureau Chief) Jalaun ✍🏻 खबर वहीं जों सत्य हो

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