
संजीव माहेश्वरी जीवा
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नब्बे के दशक में मुन्ना बजरंगी के जरिए माफिया मुख्तार के संपर्क में आए संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा ने पूर्वांचल में होने वाली गैंगवार के समीकरण बदल दिए थे। बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच वर्चस्व की लड़ाई में जीवा और पंजाब के डिम्पी चंदभान उर्फ डिम्पी सरदार से मिले अत्याधुनिक असलहों की बदौलत मुख्तार गैंग भारी पड़ने लगा। पश्चिमी उप्र में कुख्यात अपराधी सुशील मूंछ के बढ़ते वर्चस्व को खत्म करने के लिए सुनील राठी, मुन्ना बजरंगी और जीवा ने हाथ मिलाया, जिसका असर पूर्वांचल के अंडरवर्ल्ड तक दिखाई पड़ने लगा। यूं कहें कि जीवा पश्चिमी उप्र के अपराध जगत का ”मुख्तार” बन चुका था।
भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी हत्याकांड के बाद जीवा का नाम पश्चिमी उप्र के बड़े बदमाशों में शुमार किया जाने लगा। इसके बाद उसका वसूली का कारोबार बढ़ता चला गया। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक करीब दस वर्ष पूर्व वसूली की 35 लाख रुपये की रकम के बंटवारे को लेकर मुन्ना बजरंगी और जीवा में दुश्मनी हो गई थी। ये रकम मुन्ना बजरंगी ने मुख्तार को दे दी थी, जो जीवा को रास नहीं आया था। इस रकम की वजह से मुन्ना बजरंगी और मुख्तार की दूरियां बढ़ी और मुन्ना अपना नया गैंग बनाने लगा।
इसके जवाब में जीवा, मेराज, राकेश पांडेय आदि मुख्तार के करीबी भी अपने नए गैंग बनाकर ऑपरेट करने लगे। दरअसल, सुल्तानपुर जेल में रहने के दौरान मुख्तार के शूटर राकेश पांडेय उर्फ हनुमान पांडेय से जीवा का याराना बढ़ा, लेकिन कुछ ही दिनों में यह दुश्मनी में तब्दील हो गया। इसकी वजह भी ठेके-पट्टों की वसूली में मिलने वाली रकम का बंटवारा बताई जाती है। अंडरवर्ल्ड के इन बदलते समीकरणों का असर सुनील राठी पर भी हुआ और उसने भी मुख्तार के विरोधी गुटों से नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी।
तीन साल में मुख्तार गैंग का बना अहम हिस्सा
पूर्वांचल में वर्ष 2002 से 2005 के बीच मुख्तार अंसारी गैंग ने पूर्व भाजपा विधायक कृष्णानंद राय और उनके 15 करीबियों को ठिकाने लगाया था। इसमें संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा की अहम भूमिका रही। पुलिस सूत्रों के मुताबिक कृष्णानंद राय को मारने के लिए जीवा खुद एके-47 का इंतजाम करके गया था। इसके बाद उसे मुख्तार का दाहिना हाथ माना जाने लगा।
मुख्तार की शह पर उसने सुशील मूंछ से अपना हिसाब चुकाना शुरू कर दिया। इससे पश्चिमी उप्र में सुशील मूंछ से जुड़े तमाम अपराधी बृजेश सिंह गिरोह के करीब आने लगे। पुलिस अधिकारियों की मानें तो बीते कुछ दिनों से जीवा पंजाब के कुख्यात अपराधी लारेंस बिश्नोई से भी अदावत मानने लगा था। इसकी वजह मुख्तार के विरोधी गुट से लारेंस बिश्नाेई गैंग की बढ़ती करीबी और पश्चिमी उप्र के टेंडर, वसूली के कारोबार में बढ़ता दखल था।
कई बार सामने आया जौनपुर कनेक्शन
मुख्तार गैंग के करीबियों के खात्मे में कई बार जौनपुर कनेक्शन सामने आ चुका है। पंजाब के आतंकी संगठनों और मुख्तार अंसारी को हथियार मुहैया कराने वाले डिम्पी चंदभान की पंचकुला में हत्या में अंडरवर्ल्ड में उभरते जौनपुर के युवा नेता का नाम आया था। बाद में सांसद बने इस नेता का नाम मुन्ना बजरंगी हत्याकांड में भी आया। सीबीआई उससे पूछताछ करने की तैयारी में थी, हालांकि ये केस लखनऊ से दिल्ली सीबीआई भेज दिया गया।
इसी तरह लखनऊ में हुए अजित सिंह हत्याकांड, चित्रकूट जेल में मुकीम काला और मेराज की हत्या, मुन्ना बजरंगी के साले पुष्पजीत, शूटर मोहम्मद तारिक की हत्या में भी इसी नेता का हाथ होने का संदेह जताया जाता रहा, हालांकि हर बार वह ठोस सुबूतों के अभाव में बचता रहा।
हत्या में तलाशा जा रहा सुनील राठी कनेक्शन
जीवा की हत्या में सुनील राठी कनेक्शन भी तलाशा जा रहा है और इस पहलू पर भी जांच करने की बात सामने आई है, क्योंकि संजीव जीवा के साथी मुन्ना बजरंगी की हत्या बागपत जेल में हुई थी और उसमें सुनील राठी ही मुख्य आरोपी बनाया गया था। इस कारण ही इनके अपराधों का पुराना रिकार्ड भी खंगाला जा रहा है। मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद से सुनील राठी और संजीव जीवा के बीच दुश्मनी शुरू हो गई थी।
बसपा से विधायक रहे लोकेश दीक्षित से रंगदारी मांगने के मामले में वर्ष 2018 में माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी को बागपत जेल में लाया गया था। जहां मुन्ना बजरंगी की गोलियां मारकर हत्या कर दी गई थी। जिसमें टीकरी के कुख्यात सुनील राठी पर हत्या करने के आरोप लगाये गये थे। इस मुन्ना बजरंगी हत्याकांड की जांच सीबीआई कर रही है और इसमें जेल अधिकारियों पर भी कार्रवाई की गई थी। अब लखनऊ न्यायालय में मुन्ना बजरंगी के करीबी रहे माफिया संजीव जीवा की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जिसमें अभी तक पुलिस हत्या कराने वाले बड़े अपराधियों तक नहीं पहुंच पाई, लेकिन पुलिस इसका कनेक्शन कुख्यात सुनील राठी से भी जोड़कर जांच कर रही है।