पीएम किसान बीमा योजना में फर्जीवाड़े की रोजाना नई-नई परतें खुल रही हैं। अब बुंदेलखंड औद्योगिक विकास प्राधिकरण (बीडा) की जमीन की सहारे फर्जीवाड़े की बात उजागर हुई है। जालसाजों ने बीडा की करीब 67 एकड़ खतौनी के सहारे 4.26 करोड़ रुपये का फसल बीमा गटक लिया। हैरानी की बात यह कि सत्यापन कार्य में लगे सरकारी कर्मचारी भी इस गड़बड़ी को पकड़ नहीं सके। सबसे अधिक फर्जीवाड़ा डगरवाह, बाजना जैसे बीडा के गांव में सामने आया है। जालसाजी के लिए 2300 से अधिक खसरा नंबरों का इस्तेमाल हुआ। इसके जरिये ढाई सौ से अधिक लोगों के खाते में भेजी गई। अब यह मामला सामने आने के बाद से अफसरों की नींद उड़ी है। उनका कहना है जांच चल रही है। फर्जीवाड़ा मिलने पर रिकवरी के साथ प्राथमिकी भी दर्ज होगी।
फर्जी खतौनी के सहारे हुआ खेल
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की आड़ में बीमा क्लेम हड़पने का बुंदेलखंड में जमकर खेल हुआ। बीमा कंपनी एवं सरकारी कर्मचारियों से सांठगांठ करके उन लोगों ने भी लाखों रुपये का फसल बीमा हड़प लिया, जिनके पास खेती योग्य भूमि नहीं थी। फर्जी खतौनी के सहारे यह खेल हुआ। फर्जीवाड़ा करने में सबसे अधिक अधिक सरकारी खाते में दर्ज नंबरों का इस्तेमाल हुआ। जानकारों का कहना है कि सरकारी खतौनी के इस्तेमाल से गड़बड़ी जल्द पकड़ में नहीं आ सकेगी, इस वजह से फर्जी बीमा क्लेम भरने में बड़ी संख्या में सरकारी नंबरों का इस्तेमाल हुआ। जिन कागजों पर बीमा किए गए उनकी पड़ताल करने पर मालूम चला कि बीडा ने जिस जमीन के लिए दो साल पहले मुआवजा दे दिया, उसकी खतौनी का इस्तेमाल बीमा क्लेम हड़पने में किया जा रहा है। बबीना के डगरवाह एवं बाजना गांव में सबसे अधिक मामले सामने आए।
डगरवाह और बाजना गांव में सबसे अधिक मामले
डगरवाह गांव में बीडा के 314 फर्जी खतौनी लगाकर 3.29 करोड़ रुपये का बीमा क्लेम ले लिया गया वहीं, बाजाना गांव में फर्जीवाड़ा करके बीडा के नाम दर्ज 444 सरकारी नंबर को 94 खातों में चढ़ाकर 1,26,74,928 रुपये हड़प लिए गए। इसके लिए 1312 खसरे का इस्तेमाल हुआ। छानबीन में यह बात भी उजागर हुई कि कुल खसरे से भी करीब दोगुना तक बीमा भरे गए थे। बीडा के अंतर्गत बमेर, इमलिया, बछौनी, बैदोरा, बसई, परासई, अमरपुर समेत अधिग्रहीत अन्य गांव में भी इसी तरह से गड़बड़ी की आशंका है हालांकि अभी कुल कितने करोड़ रुपये की बंदरबांट हुई यह अभी तक साफ नहीं हुआ। उपनिदेशक कृषि महेंद्र पाल सिंह का कहना है कि अभी तहसील वार जांच चल रही है। गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
सत्यापन में भी नहीं पकड़ा जा सका फर्जीवाड़ा
पीएम फसल बीमा योजना में फसल की क्षतिपूर्ति देने से पहले लेखपाल एवं बीमा कंपनी की ओर से गांव-गांव सत्यापन कराया जाता है। लेखपाल के साथ ही बीमा कंपनी भी दस्तावेजों के साथ दर्ज खतौनी का मिलान करते हैं। उनकी ओर से सत्यापन करने के बाद ही बीमा की रकम खाते में भेजी जाती है। ऐसे में सत्यापन करने वाले कर्मचारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।
20 हजार किसानों की रोकी गई बीमा राशि
पीएम फसल बीमा योजना में फर्जीवाड़ा के खुलासे ने कृषि महकमे में खलबली मचा दी है। कृषि अफसरों ने तत्काल प्रभाव से 20 हजार किसानों के खाते में भेजी जाने वाली खरीफ सीजन के नुकसान के क्लेम पर रोक लगा दी। यह सभी बीमा सीएचसी से कराए गए थे। अमर उजाला ने ही इस पूरे घोटाले का खुलासा करते हुए सीएचसी से होने वाले बीमा के जरिए फर्जीवाड़े की आशंका जताई थी। अभी तक की छानबीन में इसकी पुष्टि हुई है। कृषि अधिकारियों का कहना है जनसुविधा केंद्र से 20,000 किसानों ने बीमा कराया। जांच के दायरे में दस हजार मामले संदिग्ध पाए गए। जिनमें खतौनी के गलत इस्तेमाल होने की आंशका है। अधिकांश गांव वह हैं जहां चकबंदी नहीं हुई। डीडी महेंद्र पाल सिंह का कहना है कि केसीसी धारक 67,000 किसानों को बीमा राशि का क्लेम दिया जा चुका। अब जांच पूरी होने के बाद शेष खाते में भेजी जाएगी। बता दें, इस साल खरीफ सीजन में 87,000 किसानों के नुकसान का आकलन हुआ था।
