लोकसभा में सोमवार को राष्ट्रगीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर घंटों बहस हुई। सत्ताधारी पार्टी के अलावा विपक्ष ने वंदे मारतरम पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदेमातरम को आजादी का जयघोष, शक्तिशाली मंत्र और विकसित व आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की प्रेरणास्रोत करार दिया। उन्होेंने वंदे मातरम के टुकड़े करने के लिए कांग्रेस पर भी मुस्लिम लीग के आगे झुकने का आरोप लगाया लेकिन इसी वंदे मातरम के गायन को उत्तर प्रदेश के बेसिक स्कूलों में लागू करने पर भाजपा ने अपने ही मंत्री से कुर्सी छीन ली थी। यह वह दौर था जब केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार थी।तब अटल बिहारी प्रधानमंत्री थे और बाबू कल्याण सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री। प्रदेश सरकार में रवींद्र शुक्ल बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री थे। 

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वंदेमातरम गायन अनिवार्य के बाद शुरू हो गया था विवाद

अपनी तेजतर्रार कार्यप्रणाली और ओजस्वी भाषणों के कारण चर्चाओं में रहने वाले रवींद्र शुक्ल ने शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कई फैसले लिए। इसी क्रम में उन्होंने प्रदेश के बेसिक स्कूलों में वंदेमातरम का गायन अनिवार्य कर दिया। यह एक बड़ा फैसला था क्योंकि उस समय केंद्र में अलग-अलग दलों के सहयोग से अटल बिहारी वाजपेयी सरकार चला रहे थे। रवींद्र शुक्ल के इस फैसले का प्रदेश के अलावा पूरे देश में कड़ा विरोध हुआ। राज्यमंत्री रवींद्र शुक्ल के खिलाफ फतवा भी जारी कर दिया गया था। लोकसभा में भी जमकर हंगामा हुआ। विशेषाधिकार हनन का भी प्रस्ताव आया। शीर्ष स्तर से दबाव पड़ा।

आदेश वापस को लेकर सीएम से किया इंकार

पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भी आदेश को वापस लने के लिए रवींद्र शुक्ल से कहा लेकिन उन्होंने उनकी बात को भी नहीं माना। उन्होंने कहा कि अब वह अपनी कलम से लिखा आदेश नहीं पलटेंगे चाहे कुर्सी चली जाए। कई दिनों की जद्दोजहद के बाद आखिरकार 4 दिसंबर 1998 को रवींद्र शुक्ल को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया। इस पूरे मामले में रवींद्र शुक्ल ने अपनी बर्खास्तगी के बारे में विस्तार से अमर उजाला टीम को जानकारी दी। इस दौरान उन्होंने यह भी खुलासा किया कि कैसे एक बयान ने पूरा मामला बदल दिया।

सुनिए बर्खास्तगी की कहानी, रवींद्र शुक्ल की जुबानी….



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