अमर उजाला ब्यूरो

झांसी। बेसिक शिक्षा विभाग में 18 साल पहले हुए घोटाले की जांच कर रही आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा ( ईओडब्ल्यू) को अभियोजन अनुमति मिलने के बाद पहली गिरफ्तारी करने में 11 महीने का लंबा वक्त लग गया। शुरूआत से ही इस मामले में ईओडब्ल्यू की भूमिका काफी ढीली रही। उसने अभियोजन चलाने की इजाजत शासन से मांगने में ही करीब नौ साल गुजार दिए। इस मामले में अभी तत्कालीन जिलाधिकारी समेत अन्य सात अफसर भी आरोपी हैं लेकिन, शासन ने इनके खिलाफ अभियोजन चलाने की अनुमति अभी तक नहीं दी है।

बांदा के बेसिक शिक्षा विभाग में प्राथमिक विद्यालयों में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपये से खरीद होनी थी लेकिन, आरोप है कि इस खरीद में अफसरों ने जमकर मनमानी की। फर्जी फर्मों को मनमाने तरीके से लाखों रुपये का भुगतान करके रकम का बंदरबाट कर लिया गया। इस मामले के तूल पकड़ने पर तत्कालीन मंडलायुक्त के आदेश पर वर्ष 2005 में तत्कालीन सहायक आयुक्त एसके सूर्यवंशी समेत अन्य के खिलाफ सरकारी धन के गबन, धारा 409, 467, 468, 471, 120-बी एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई। मामले की गंभीरता के चलते शासन ने मामले की जांच आर्थिक अपराध अनुसंधान इकाई के हवाले कर दी लेकिन, जांच एजेंसी ने अभियोजन चलाने की इजाजत मांगने में ही नौ साल बिता दिए। वर्ष 2014 में इकाई ने अभियोजन चलाने की शासन से अनुमति मांगी । शासन में यह फाइल धूल खाती रही। आखिरकार आठ साल बाद वर्ष 2022 में शासन ने अभियोजन चलाने की अनुमति दी। अनुमति मिलने के बाद चार्जशीट दाखिल करने के साथ ही आरोपियों की गिरफ्तारी का रास्ता भी साफ हो गया लेकिन, लेटलतीफी की वजह से ईओडब्ल्यू को पहली गिरफ्तारी करने में ही करीब 11 माह का लंबा समय गुजर गया।

तत्कालीन जिलाधिकारी समेत सात अन्य अफसर भी आरोपी

इस मामले में बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी बृजेंद्र सिंह समेत सात जनपद स्तरीय अन्य अधिकारी भी शामिल हैं लेकिन, ईओडब्ल्यू अधिकारियों का कहना है कि अभी तक तत्कालीन जिलाधिकारी समेत अन्य किसी अफसर के खिलाफ अभियोजन चलाने की इजाजत नहीं मिली है। अभी इस इजाजत के मिलने का इंतजार किया जा रहा है।



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